- Foreign airlines will leave India: भारतीय विमानन क्षेत्र की तेजी: विदेशी एयरलाइंस की 55% हिस्सेदारी, भारतीय कंपनियों का 45% हिस्सा |
- समझिए आखिर क्या है पूरा विवाद
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- किन विदेशी एयरलाइंस को DGGI ने भेजे नोटिस
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- विदेशी विमान कंपनियों की भारत में कितनी हिस्सेदारी?
- क्या विदेशी विमान कंपनियां सच में भारत छोड़ने का जोखिम उठा सकती हैं?
Foreign airlines will leave India: भारतीय विमानन क्षेत्र की तेजी: विदेशी एयरलाइंस की 55% हिस्सेदारी, भारतीय कंपनियों का 45% हिस्सा |
Foreign airlines will leave India: विदेशी एयरलाइंस कंपनियां भारत छोड़ने की धमकी दे रही हैं। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि अगर भारत टैक्स संबंधी मुद्दों को हल नहीं करता है, तो विदेशी विमान कंपनियां भारतीय बाजार से बाहर हो सकती हैं। IATA के अनुसार, भारत में उच्च कर दरें और जटिल टैक्स संरचना विदेशी एयरलाइंस के लिए परिचालन को कठिन बना रही हैं। इसके अलावा, ईंधन पर लगने वाले भारी कर और अन्य शुल्क भी विदेशी कंपनियों के लिए वित्तीय बोझ बन रहे हैं।
Foreign airlines will leave India: भारत में विमानन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बन चुका है। लेकिन टैक्स संबंधित चुनौतियाँ इस विकास को बाधित कर सकती हैं। भारतीय सरकार को इस समस्या पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि विदेशी एयरलाइंस कंपनियां यहां संचालन जारी रख सकें और भारतीय यात्रियों को बेहतरीन सेवाएं मिल सकें।
IATA का कहना है कि सरकार को टैक्स सिस्टम को सरल और पारदर्शी बनाना चाहिए ताकि विदेशी एयरलाइंस कंपनियों को भारत में व्यापार करना आसान हो सके। यदि सरकार ने इस मुद्दे पर शीघ्रता से कदम नहीं उठाए, तो भारतीय विमानन क्षेत्र को नुकसान हो सकता है, जिससे न केवल विदेशी एयरलाइंस प्रभावित होंगी, बल्कि भारतीय यात्रियों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल, पिछले कुछ महीनों में कई बड़ी विदेशी विमान कंपनियों के भारत स्थित कार्यालयों को डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) द्वारा टैक्स चोरी के नोटिस मिले हैं। इनमें कतर एयरवेज, ब्रिटिश एयरवेज, लुफ्थांसा और सिंगापुर एयरलाइंस जैसी प्रमुख कंपनियों के नाम शामिल हैं। ये नोटिस इन कंपनियों द्वारा अपने भारतीय कार्यालयों को दी जाने वाली सेवाओं पर टैक्स न भरने से संबंधित हैं।
दुबई में आयोजित IATA की एनुअल जनरल मीटिंग में, डायरेक्टर जनरल विली वॉल्श ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, “इन समस्याओं के कारण, ऐसा संभव है कि ये विमान कंपनियां भारत छोड़कर चली जाएं। पहले, कम मुनाफा होने की वजह से ये कंपनियां धीरे-धीरे अपनी फ्लाइट्स की संख्या कम करेंगी और अंततः भारत से पूरी तरह से अपना कारोबार बंद कर देंगी।”
वॉल्श ने यह भी कहा कि इन नोटिसों और टैक्स संबंधी जटिलताओं के कारण विदेशी एयरलाइंस के लिए भारतीय बाजार में संचालन करना मुश्किल हो गया है। अगर सरकार ने इन मुद्दों का समाधान नहीं किया, तो विदेशी एयरलाइंस कंपनियां अपने संचालन को सीमित या समाप्त कर सकती हैं, जिससे भारतीय विमानन क्षेत्र को भी नुकसान हो सकता है।
समझिए आखिर क्या है पूरा विवाद
Foreign airlines will leave India: डीजीजीआई ने विदेशी विमान कंपनियों को नोटिस इसलिए भेजे क्योंकि उन्होंने कई सेवाओं पर टैक्स का भुगतान नहीं किया। विदेशी विमान कंपनियों को परेशानी इसलिए हो रही है क्योंकि अक्टूबर 2023 से ही उन पर DGGI नजर रखे हुए हैं।
Foreign airlines will leave India: यह सरकारी विभाग टैक्स चोरी रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है और इनका कहना है कि विदेशी विमान कंपनियों के भारतीय कार्यालय, अपनी मुख्य कंपनी से ली जाने वाली कई सेवाओं पर जीएसटी नहीं दे रहे हैं। इन सेवाओं में विमानों का रखरखाव, क्रू मेंबर्स को पेमेंट, तेल और विमान को लीज पर लेने का रेंटल शामिल है।
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DGGI का मानना है कि इन सेवाओं पर जीएसटी लागू होता है और इसका भुगतान करना अनिवार्य है। इन नोटिसों के बाद विदेशी एयरलाइंस कंपनियों को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनके भारतीय बाजार में परिचालन प्रभावित हो सकते हैं। अगर यह स्थिति बरकरार रही तो यह संभव है कि विदेशी विमान कंपनियां अपने भारत में संचालित फ्लाइट्स की संख्या कम कर सकती हैं या फिर पूरी तरह से कारोबार बंद कर सकती हैं, जिससे भारतीय यात्रियों को भी असुविधा हो सकती है।
IATA ने अपने पक्ष में क्या कहा
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) ने भारत सरकार को पत्र लिखकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। IATA का कहना है कि सेवा प्रदान करने के मामले में हेड ऑफिस और ब्रांच ऑफिस दोनों को एक साथ टैक्स के दायरे में नहीं लाया जा सकता। एयरलाइंस को केवल उन्हीं सेवाओं पर टैक्स देना चाहिए जो भारतीय टैक्स कानूनों के तहत आती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय स्टाफ के विदेश में रहने के लिए होटल के खर्चे पर टैक्स देना उचित है।
IATA का यह भी मानना है कि भारतीय सरकार को टैक्स संबंधी नियमों को स्पष्ट और सरल बनाना चाहिए ताकि विदेशी एयरलाइंस कंपनियों को अनावश्यक वित्तीय बोझ का सामना न करना पड़े। पत्र में कहा गया है कि विदेशी विमान कंपनियों को भारत में अपनी सेवाएं जारी रखने के लिए उचित और व्यावहारिक टैक्स नीतियों की आवश्यकता है।
यदि सरकार इन सुझावों पर ध्यान देती है, तो यह भारतीय विमानन क्षेत्र को स्थिर और समृद्ध बनाए रखने में सहायक होगा। IATA ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर टैक्स संबंधी मुद्दों का समाधान नहीं हुआ, तो विदेशी एयरलाइंस कंपनियां अपने संचालन को सीमित या बंद कर सकती हैं, जिससे भारतीय विमानन उद्योग को नुकसान हो सकता है।
एक एयरलाइन के वरिष्ठ अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि जब किसी विदेशी विमान कंपनी को भारत में उड़ान भरने की इजाजत मिलती है, तो डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) यह इजाजत उनकी पूरी दुनिया के हेड ऑफिस को देता है, न कि केवल भारत की यूनिट को। उन्होंने यह भी कहा कि हमने सरकार से अनुरोध किया है कि इस मामले को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाए।
अधिकारी ने यह स्पष्ट किया कि DGCA द्वारा दी जाने वाली अनुमति पूरी कंपनी को संदर्भित करती है, और इसलिए टैक्स संबंधी मुद्दों का समाधान भी इसी व्यापक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार से अपील की है कि टैक्स और नियामक मामलों को तब तक रोका जाए जब तक कि इनकी समीक्षा और सुधार नहीं हो जाती।
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विदेशी एयरलाइंस कंपनियों को भारत में संचालित करने में आने वाली बाधाओं को दूर करना आवश्यक है। अगर सरकार इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देती है, तो इससे विदेशी एयरलाइंस कंपनियों के भारत में परिचालन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अधिकारी ने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही इस मामले में सकारात्मक कदम उठाएगी, जिससे भारतीय विमानन क्षेत्र को स्थिरता और वृद्धि मिल सके।
IATA ने यह भी कहा कि भारत में विदेशी विमान कंपनियों के कार्यालय वास्तव में विमान लीज, क्रू, पायलट, ईंधन और रख-रखाव जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं। भारत से आने-जाने वाली सभी उड़ानों का फैसला, नियंत्रण और संचालन उन विदेशी कंपनियों के हेड ऑफिस से ही किया जाता है। IATA का कहना है कि भारत में स्थित ब्रांच ऑफिस को किसी भी तरह के रणनीतिक या कार्यकारी जोखिम का काम सौंपना कानूनी रूप से उचित नहीं है।
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IATA ने स्पष्ट किया कि विदेशी एयरलाइंस के भारतीय कार्यालय सिर्फ स्थानीय प्रशासनिक कार्यों को संभालते हैं और प्रमुख निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होते। इसलिए, ब्रांच ऑफिस पर टैक्स लगाने का आधार कमजोर है क्योंकि वे केवल हेड ऑफिस द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं।
IATA ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए टैक्स संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार करे। अगर यह मुद्दा सही तरीके से हल नहीं हुआ, तो इससे विदेशी एयरलाइंस कंपनियों के संचालन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और भारतीय विमानन क्षेत्र को भी नुकसान हो सकता है। यह समय की मांग है कि सरकार विदेशी कंपनियों के साथ संतुलित और व्यवहारिक नीतियों को अपनाए ताकि दोनों पक्षों को लाभ हो।
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के डायरेक्टर जनरल विली वॉल्श का मानना है कि भारत में बहुत ज्यादा तरक्की की संभावनाएं हैं, लेकिन इनको भुनाने के लिए सरकार को सही नीतियां बनानी होंगी। वॉल्श ने बताया कि अगर हम चीन के बाजार को देखें, तो उसका दुनिया के एयर ट्रांसपोर्ट में 12% हिस्सा है। यह इस बात का संकेत है कि भारत में भी इतनी ही तरक्की हो सकती है, पर यह तभी मुमकिन है जब सरकार उचित नीतियों को लागू करे।
वॉल्श ने यह भी कहा कि भारत का विमानन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, और इसमें विश्वस्तरीय क्षमता है। लेकिन अगर सरकार ने सही और संतुलित नीतियों को लागू नहीं किया, तो यह विकास बाधित हो सकता है। सही नीतियों का अर्थ है टैक्स संरचना को सरल और पारदर्शी बनाना, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना, और विमानन क्षेत्र में आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना।
IATA के अनुसार, अगर सरकार ने इन सुझावों पर ध्यान दिया, तो भारतीय विमानन क्षेत्र न केवल एशिया में बल्कि पूरे विश्व में अग्रणी बन सकता है। वॉल्श ने यह भी जोर दिया कि विदेशी एयरलाइंस के लिए अनुकूल माहौल बनाना आवश्यक है ताकि वे भारत में निवेश और संचालन के लिए प्रोत्साहित हों। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी होगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा।
किन विदेशी एयरलाइंस को DGGI ने भेजे नोटिस
Foreign airlines will leave India: जिन विमान कंपनियों को समन जारी किए गए हैं उनमें ब्रिटिश एयरवेज, लुफ्थांसा, सिंगापुर एयरलाइंस, एतिहाद एयरवेज़, थाई एयरवेज, कतर एयरवेज, अमीरात, ओमान एयरलाइंस, एयर अरबिया और सऊदिया (पूर्व में सऊदी अरबियन एयरलाइंस) शामिल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल की शुरुआत में DGGI के मेरठ और मुंबई ज़ोन ने इन कंपनियों की जांच की थी।
DGGI ने टैक्स संबंधी मामलों में गड़बड़ियों को लेकर इन कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं। यह जांच अक्टूबर 2023 से शुरू की गई थी और इसमें पाया गया कि कई विदेशी विमान कंपनियों ने अपने भारतीय कार्यालयों से संबंधित सेवाओं पर जीएसटी का भुगतान नहीं किया था।
यह सेवाएं विमानों का रखरखाव, क्रू मेंबर्स को पेमेंट, ईंधन और विमान को लीज पर लेने का रेंटल शामिल हैं। DGGI का मानना है कि इन सेवाओं पर टैक्स लागू होता है और इसका भुगतान करना अनिवार्य है।
इससे भी पढ़े :- जन सुराज का नया संकेत: प्रशांत किशोर के दावे और JDU-RJD की चिंता |
इन नोटिसों के बाद विदेशी एयरलाइंस कंपनियों को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनके भारतीय बाजार में परिचालन प्रभावित हो सकते हैं। अगर यह स्थिति बरकरार रही तो यह संभव है कि विदेशी विमान कंपनियां अपने भारत में संचालित फ्लाइट्स की संख्या कम कर सकती हैं या फिर पूरी तरह से कारोबार बंद कर सकती हैं, जिससे भारतीय यात्रियों को भी असुविधा हो सकती है।
ब्रिटिश एयरवेज, सिंगापुर एयरलाइंस जैसी कंपनियों ने DGGI की कार्रवाई को स्वीकार कर लिया है और ये एयरलाइंस अधिकारियों के साथ सहयोग कर रही हैं। लेकिन उन्होंने इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने पास अपनी नाराजगी भी दर्ज कराई है। IATA की स्थापना साल 1945 में कुछ एयरलाइन कंपनियों ने की थी। आज दुनियाभर की 300 से ज्यादा एयरलाइंस कंपनियां इसकी मेंबर हैं।
इसके साथ ही, इस समस्या का हल ढूंढने के लिए सरकार और एयरलाइंस कंपनियों के बीच समझौते पर बातचीत भी चल रही है। इस समय, इस मुद्दे पर समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है ताकि भारतीय यात्रियों को कोई असुविधा ना हो। इस प्रकार की विवादित स्थितियों को समाधान के लिए सामाजिक समर्थन और साहसिक निर्णय लेने की जरूरत है ताकि यात्रा सेवाओं में अवरोध ना हो।
विदेशी विमान कंपनियों की भारत में कितनी हिस्सेदारी?
Foreign airlines will leave India: भारतीय विमानन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और घरेलू हवाई यातायात पहले से ही दुनिया में तीसरे नंबर पर है। बजट कैरियर IndiGo के नेतृत्व में भारत का एविशेन मार्केट तेजी से बढ़ रहा है, जहां विमान बनाने वाली कंपनियों के पास 1000 से ज्यादा विमानों का ऑर्डर पेंडिंग है। इन विमानों में छोटे और बड़े दोनों तरह के विमान शामिल हैं, जिनमें से बड़े विमानों का इस्तेमाल खासकर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में किया जाता है।
IndiGo की सफलता और बढ़ती डिमांड के साथ, विमानन उद्योग को भारत में विशेष रूप से नई ऊर्जा और ऊर्जावान दिशाओं में देखने का मौका मिल रहा है। यह सेक्टर अब न केवल यात्रा को आरामदायक बना रहा है, बल्कि अन्य क्षेत्रों के विकास को भी प्रोत्साहित कर रहा है। इसमें तकनीकी नवाचार, रोजगार सृजन, और अर्थव्यवस्था के लिए एक नया क्षेत्रीय डायनामिक दृष्टिकोण शामिल है।
भारत के एविशेन मार्केट की क्षमता को देखते हुए विदेशी विमान कंपनियां भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की ओर ध्यान दे रही हैं। दिसंबर 2023 तक डीजीसीए के आंकड़ों के अनुसार, इंटरनेशनल एयर ट्रैफिक में भारत से आने-जाने वाली विदेशी विमान कंपनियों की हिस्सेदारी 55% है। सबसे ज्यादा 10% हिस्सेदारी एमिरेट्स की है। इसके बाद सिंगापुर एयरलाइन्स, एतिहाद, कतर एयरवेज, लुफ्तहांसा और एयर अरेबिया का नंबर है।
विदेशी विमान कंपनियों का भारतीय एविशेन मार्केट में हिस्सा बढ़ना विमानन क्षेत्र के विकास का एक संकेत है। यह न केवल उड़ान सेवाओं को महंगाई से बचाता है, बल्कि अधिक संवाद के साधन भी बनाता है। भारत की यात्रा सेवाओं को विशेष ध्यान देने से, यह विमानन क्षेत्र को आर्थिक और तकनीकी दृष्टिकोण से भी विकसित करने में मदद मिलेगी।
भारतीय विमान कंपनियां इंडिगो, एयर इंडिया, विस्तारा, एयर इंडिया एक्सप्रेस और स्पाइसजेट भी इस क्षेत्र में अपनी पैठ बना रही हैं। कुल मिलाकर 72 विदेशी विमान कंपनियों के मुकाबले सिर्फ 5 भारतीय विमान कंपनियां मिलकर भारत से आने-जाने वाली अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा का 45% हिस्सा संभालती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर-दिसंबर के दौरान देश में इंटरनेशनल एयर ट्रैफिक 1.73 करोड़ रहा। इस डिमांड को 78 विदेशी और छह भारतीय कंपनियों ने पूरा किया।
इसके बावजूद, भारतीय विमान कंपनियों ने भारतीय एवियेशन मार्केट में अपनी पहचान बनाने में सफलता प्राप्त की है। उनकी सेवाएं, मौजूदा मूल्यांकन, और ग्राहक समर्थन की बढ़ती मांग के साथ, ये कंपनियां अपने स्थान को मजबूती से बनाए रख रही हैं। भारतीय विमान कंपनियों का यह सफलतापूर्ण प्रयास हवाई यातायात के क्षेत्र में विकास और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।
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क्या विदेशी विमान कंपनियां सच में भारत छोड़ने का जोखिम उठा सकती हैं?
यदि कोई विमान कंपनी फ्लाइट्स की संख्या कम कर देती है या पूरी तरह से भारत से निकल जाती है, तो उसकी जगह कोई दूसरी कंपनी ले लेगी। इससे न सिर्फ उस कंपनी का मार्केट शेयर कम हो जाएगा, बल्कि किसी दूसरी कंपनी को इस मार्केट शेयर का फायदा होगा क्योंकि कम प्रतिस्पर्धा होने से उसे उस रूट पर बेहतर दाम मिल सकेंगे। हालांकि हकीकत ये है कि विदेशी विमान कंपनियां लगातार भारत में अपना कारोबार बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। भारत से आने-जाने वाले नए एयर रूट बना रही हैं और अपनी फ्लाइंट्स की संख्या भी बढ़ा रही हैं।
लुफ्थांसा ने हाल ही में हैदराबाद-फ्रैंकफर्ट रूट का आरंभ किया है। इसके बाद से इसकी क्षमता कोविड से पहले के स्तर से 14 फीसदी बढ़ गई है। वहीं, ब्रिटिश एयरवेज दिल्ली और लंदन (हीथ्रो) के बीच एक नई फ्लाइट शुरू करने जा रही है, जिससे उसकी साप्ताहिक उड़ानों की संख्या 5 शहरों में 63 हो जाएगी। इसके अलावा, एतिहाद जयपुर से नई फ्लाइट शुरू कर रही है और तिरुवनंतपुरम से फ्लाइटों की संख्या बढ़ रही है। यह सारे कदम बताते हैं कि विमान कंपनियां भारतीय बाजार में अपनी भूमिका को बढ़ाने के लिए तैयार हैं और यहां की वृद्धि और आगे बढ़ने के लिए तत्पर हैं।