RBI : जानिए RBI ने 8 बार रेपो रेट में बदलाव क्यों नहीं किया और महंगाई से क्या है इसका रिश्ता?

RBI : मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी RBI की अहम समिति है, जिसे देश के अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति का निर्धारण

RBI :भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने महंगाई के खिलाफ कदम उठाने के लिए आठवीं बार रेपो रेट में किसी बदलाव की घोषणा नहीं की है। यह निर्णय वित्त वर्ष 2024-25 के लिए रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बनाए रखने का है। साथ ही, विकास दर को 7 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है।

RBI : 16 जून को हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पहली बैठक में यह निर्णय लिया गया। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य महंगाई को नियंत्रित करना है ताकि देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी रहे। इसके बावजूद, एमपीसी ने रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया, जिसके कारण बाजार में अधिकतम रुचि रही।

बैठक के बाद, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णयों को साझा किया। उन्होंने बताया कि देश में बढ़ती महंगाई के कारण, लगातार आठवीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इससे सामान्य लोगों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा ताकि वे महंगे लोन से राहत पा सकें। यह निर्णय महंगाई को कंट्रोल में लाने का प्रयास है और एक उदार रुख को दर्शाता है।

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क्या है मौद्रिक नीति समिति 

RBI :मौद्रिक नीति समिति, जिसे एमपीसी कहा जाता है, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक महत्वपूर्ण समिति है। इसे देश की अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति के निर्धारण और कार्यान्वयन के लिए गठित किया गया है। इस समिति का मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है, साथ ही आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है।

एमपीसी के अंतर्गत, आरबीआई विभिन्न मौद्रिक नीतियों को बनाती है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक हैं। यह समिति मौद्रिक नीति के तार्किक निर्धारण के माध्यम से समृद्धि को प्रोत्साहित करती है और साथ ही सुनिश्चित करती है कि वित्तीय बाज़ार में स्थिरता बनी रहे। इसके अलावा, यह समिति स्थायी वित्तीय समृद्धि की सुरक्षा और स्थिरता के लिए अहम निर्णय लेने का भी काम करती है।

इस समिति में कितने सदस्य 

RBI : एमपीसी में कुल आठ सदस्य होते हैं, जिनमें से 3 भारतीय रिजर्व बैंक के सदस्य होते हैं। तीन सदस्यों का चयन केंद्र सरकार की तरफ से किया जाता है। एमपीसी भारत के अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति को निर्धारित और कार्यान्वित करने के लिए गठित किया गया है। इस समिति का मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है।

एमपीसी में भारतीय रिजर्व बैंक के वाणिज्यिक निर्देशक, गवर्नर, और उप-गवर्नर शामिल होते हैं। इसके अलावा, तीन सदस्यों का चयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जिन्हें एमपीसी के काम की सटीक दिशा देने के लिए चुना जाता है। इस समिति के माध्यम से, भारत की मौद्रिक नीति में सुधार होता रहता है और वित्तीय बाजार की स्थिरता बनी रहती है।

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एमपीसी का कार्य और उद्देश्य   

RBI : मौद्रिक नीति समिति का मुख्य काम रेपो रेट जैसे प्रमुख ब्याज दरों का निर्धारण करना है, जो देश की अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, इनका उद्देश्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को 4% के लक्ष्य बैंड में बनाए रखना है।

RBI : एमपीसी की समिति रेपो रेट के माध्यम से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का काम करती है, जो अर्थव्यवस्था में स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसके अलावा, यह समिति उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को निर्धारित लक्ष्य बैंड में बनाए रखने के लिए काम करती है, जो अप्रत्याशित मुद्रास्फीति के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर और उत्कृष्ट बनाना है।

RBI : जानिए RBI ने 8 बार रेपो रेट में बदलाव क्यों नहीं किया और महंगाई से क्या है इसका रिश्ता?
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क्यों नहीं किया गया 8वीं बार रेपो रेट में बदलाव

RBI : भारतीय रिजर्व बैंक ने इस वित्तीय वर्ष में लगातार 8वीं बार रेपो रेट में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया है। यह निर्णय मौद्रिक नीति की स्थिरता को बनाए रखने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने का हिस्सा है।

RBI : भारतीय रिजर्व बैंक के इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखना है ताकि वित्तीय बाजारों में सुधार हो सके। इसके साथ ही, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का प्रयास भी किया जा रहा है ताकि देश में अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।इस निर्णय के माध्यम से, भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने के लिए अच्छी योजनाएं बनाने का काम किया है ताकि देश के अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके।

5 प्वाइंट में समझिये इस तरह के फैसले की वजह

मुद्रास्फीति नियंत्रण: भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए पहले भी कई कदम उठाए हैं। यदि रेपो रेट को स्थिर रखा जाए, तो इससे सुनिश्चित होगा कि मुद्रास्फीति नियंत्रित सीमा में रहेगी।रेपो रेट को स्थिर रखने के फायदे बहुत हैं। इससे बैंकों को आर्थिक दिशा मिलती है और वे आसानी से ऋण प्रदान कर सकते हैं। साथ ही, यह वित्तीय बाजार में स्थिरता का भी कारण बनता है जिससे बाजार में आपूर्ति और मांग की अंतरव्याप्ति कम होती है। रेपो रेट की स्थिरता निवेशकों और उद्यमियों को भी भरोसा दिलाती है क्योंकि इससे वे बाजार की स्थिरता में विश्वास करते हैं। अतः, रेपो रेट को स्थिर रखना मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है और देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाए रखने में सहायक साबित हो सकता है।

आर्थिक सुधार: साल 2020-21 में फैली कोरोना महामारी ने दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गहरा चोट पहुंचाया था, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर है। ऐसे में रेपो रेट को स्थिर रखकर आरबीआई आर्थिक सुधार को स्थिरता प्रदान करना चाहती है, जिससे व्यापारिक गतिविधियों और निवेश में किसी भी तरह की बाधा न आए।

RBI : कोरोना महामारी के कारण व्यापार और निवेश में कमी आई थी, जिससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा। लेकिन रेपो रेट की स्थिरता से उम्मीद है कि व्यवसायों को स्थिरता मिलेगी और वे अधिक से अधिक निवेश कर सकेंगे। इससे अर्थव्यवस्था में गति बढ़ सकती है और नौकरियों की संख्या में भी वृद्धि हो सकती है। आरबीआई का यह कदम आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण है और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मदद कर सकता है।

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ब्याज दरों का प्रभाव:रेपो रेट को बार बार बदलने से ब्याज दरों में अस्थिरता आती है, जिससे बैंकों के लिए उधार देने और उपभोक्ताओं के लिए उधार लेने की प्रक्रिया में कठिनाई हो सकती है। स्थिर रेपो रेट से वित्तीय संस्थानों को योजना बनाने में मददगार साबित होता है।बैंकों के लिए ब्याज दरों में अस्थिरता से वित्तीय संस्थानों को अनियंत्रित भावना होती है, जिससे वे आर्थिक योजनाओं को बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं। इसके बावजूद, स्थिर रेपो रेट से वित्तीय संस्थानों को ब्याज दरों के प्रति योजनाबद्धता मिलती है, जिससे वे उपभोक्ताओं के लिए सही और स्थायी ब्याज दरें प्रदान कर सकते हैं।

स्थिर रेपो रेट से वित्तीय संस्थानों को ऋण देने के प्रति आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें बाजार की स्थिरता के साथ सम्मान भी मिलता है। इससे उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित और उचित ब्याज दरें मिलती हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति को स्थिर रखने में मदद करती हैं।

वैश्विक आर्थिक स्थितियां : वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था में काफी अस्थिरता है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उतार-चढ़ाव भी है जिसे देखते हुए RBI ने यह फैसला लिया हो सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में रेपो रेट में स्थिरता बनाए रखना सबसे बेहतर विकल्प है।अस्थिर वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण बैंकों को भी अपेक्षित बाजारी उतार-चढ़ाव मिलता है, जिससे ब्याज दरों में व्यत्यय हो सकता है। ऐसे में, रेपो रेट की स्थिरता से वित्तीय संस्थानों को योजनाबद्धता मिलती है और उन्हें आर्थिक योजनाओं को बनाने में सहायता मिलती है।

इसके साथ ही, स्थिर रेपो रेट से ऋण देने और ऋण लेने की प्रक्रिया में सुधार होता है जिससे वित्तीय संस्थानों को बाजार में स्थिरता का भरोसा होता है। इससे उन्हें ऋण देने और उपभोक्ताओं को ऋण लेने में सहजता मिलती है और वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।

आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना: आरबीआई अपने इस फैसले से देश की आर्थिक वृद्धि को निरंतर बनाए रखना चाहते हैं। इससे व्यापारिक और निवेश गतिविधियों को समर्थन मिलता है और आर्थिक विकास की प्रक्रिया में तेजी आती है।रिजर्व बैंक के फैसले से बैंकों को स्थिरता मिलती है और वे वित्तीय सेवाएं और ऋणों को सही समय पर प्रदान कर सकते हैं। इससे उद्यमियों को नए प्रोजेक्ट्स के लिए आसान ऋण मिलते हैं और व्यवसायों के लिए निवेश करने की स्थिति में सुधार होता है।

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साथ ही, स्थिरता से बैंकों को वित्तीय बाजार में अधिक विश्वास मिलता है और इससे उपभोक्ताओं को भी आत्मविश्वास होता है। वह बैंकों से समय पर ऋण लेने में सहजता महसूस करते हैं और इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। इस प्रकार, आरबीआई के फैसले से देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उत्तराधिकारियों को भी लाभ मिलता है।

आखिर है क्या ये रेपो रेट 

RBI : रेपो रेट उस ब्याज दर को कहा जाता है जिस पर भारत का केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक या RBI) वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। जब बैंकों को नकदी की कमी होती है, तो वे अपने होल्डिंग्स में मौजूद सरकारी प्रतिभूतियों को केंद्रीय बैंक को बेचकर कुछ समय के लिए पैसे उधार लेते हैं, जिसे रेपो ट्रांजैक्शन कहा जाता है।

RBI : बैंक उधार लेने के कुछ समय बाद, सरकारी प्रतिभूतियों को वापस खरीद लेते हैं और इसके लिए केंद्रीय बैंक को एक निश्चित ब्याज दर का भुगतान करते हैं, जिसे रेपो रेट कहा जाता है। इस प्रक्रिया से RBI बैंकों को आवश्यक नकदी प्राप्त करने में मदद करता है और वित्तीय बाजार में स्थिरता बनाए रखने में सहायक होता है। रेपो रेट वित्तीय प्रणाली में नियमितता और स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रेपो रेट से महंगाई का कनेक्शन 

RBI : जब आरबीआई रेपो दर को कम करता है, तो व्यावसायिक बैंक भी अपने ग्राहकों के लिए ऋण के ब्याज दरों को कम करते हैं। कम ब्याज दर के कारण ऋण लेने पर देने वाला ब्याज सस्ता हो जाता है, जिससे लोग ऋण लेते हैं। ऋण लेने के बाद लोग उसे खर्च करते हैं, जिससे बाजार में मांग बढ़ जाती है। मांग बढ़ने से वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे महंगाई में वृद्धि होती है।

RBI : यह प्रक्रिया अर्थव्यवस्था में उत्साह को बढ़ावा देती है और निवेश को बढ़ावा प्रदान करती है। लोगों को ऋण लेने के लिए प्रेरित करने के लिए अधिक आकर्षक बनाने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इससे व्यावसायिक गतिविधियों की स्थिरता में सहायता मिलती है और बाजार को भी एक निश्चित दिशा मिलती है। इस प्रकार, ऋण की मांग बढ़ने से अर्थव्यवस्था में सुधार होता है और समृद्धि की दिशा में प्रगति होती है।

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रेपो रेट घटाने से क्या होता है

RBI : जब आरबीआई रेपो दर को कम करता है, तो व्यावसायिक बैंक भी अपने ग्राहकों के लिए ऋण के ब्याज दरों को कम करते हैं। कम ब्याज दर के कारण ऋण लेने पर देने वाला ब्याज सस्ता हो जाता है, जिससे लोग ऋण लेते हैं। ऋण लेने के बाद लोग उसे खर्च करते हैं, जिससे बाजार में मांग बढ़ जाती है। मांग बढ़ने से वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे महंगाई में वृद्धि होती है।

RBI : यह प्रक्रिया अर्थव्यवस्था में उत्साह को बढ़ावा देती है और निवेश को बढ़ावा प्रदान करती है। लोगों को ऋण लेने के लिए प्रेरित करने के लिए अधिक आकर्षक बनाने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इससे व्यावसायिक गतिविधियों की स्थिरता में सहायता मिलती है और बाजार को भी एक निश्चित दिशा मिलती है। इस प्रकार, ऋण की मांग बढ़ने से अर्थव्यवस्था में सुधार होता है और समृद्धि की दिशा में प्रगति होती है।

 

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