Kanwar Yatra Controversy: कांवड़ मार्गों पर नेमप्लेट लगाने के फैसले से बढ़ीं BJP की मुश्किलें, सहयोगी दल भी विरोध में |
Kanwar Yatra Controversy: उत्तर प्रदेश में इन दिनों कांवड़ यात्रा को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। राज्य सरकार ने पहले मुजफ्फरनगर जिले में 240 किलोमीटर लंबे कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी होटलों, ढाबों और ठेलों सहित भोजनालयों के मालिकों और कामगारों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश जारी किया था। इसके बाद शुक्रवार (19 जुलाई) को सरकार ने पूरे राज्य में कांवड़ मार्गों पर स्थित दुकानों के लिए भी यही आदेश लागू कर दिया। इस फैसले के बाद व्यापारियों और दुकानदारों में असंतोष की स्थिति पैदा हो गई है।
दुकानदारों का कहना है कि इस तरह का आदेश न केवल अनावश्यक है, बल्कि इससे उनके व्यापार पर भी असर पड़ सकता है। सरकार का तर्क है कि इससे सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जा सकेगा और कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सकेगा। हालांकि, सरकार के इस फैसले से बीजेपी की सहयोगी पार्टियों में भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। उनके अनुसार, यह आदेश व्यापारियों और आम जनता के बीच अनावश्यक भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है। विवाद के इस माहौल में सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
Kanwar Yatra Controversy: बीजेपी सरकार के इस फैसले की आलोचना होना शुरू हो गई है। जहां विपक्ष के नेता इस फैसले को विभाजनकारी बता रहे हैं, वहीं अब बीजेपी के सहयोगी भी उसके ऊपर हमलावर हो गए हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने भी अपनी ही पार्टी को नसीहत दी है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू, जयंत चौधरी की आरएलडी, और चिराग पासवान की एलजेपी (आर) ने यूपी सरकार के फैसले को गलत बताया है।
जेडीयू ने कहा है कि इस फैसले से समाज में अलगाव बढ़ेगा और यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। आरएलडी ने इसे व्यापारियों और आम जनता के बीच अनावश्यक तनाव पैदा करने वाला कदम बताया है। एलजेपी (आर) ने भी इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि इससे व्यापारियों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है और सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
इस विवाद के बीच, बीजेपी को अपने सहयोगियों की नाराजगी को भी संभालना पड़ेगा और साथ ही जनता के बीच अपनी छवि को भी सुधारना होगा। ऐसे में देखना होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और अपने फैसले को कैसे सही ठहराती है।
सबका साथ, सबका विकास मंत्र के खिलाफ सरकार का फैसला: जेडीयू
Kanwar Yatra Controversy: जेडीयू ने यूपी सरकार के फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ मंत्र के खिलाफ बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा, “यह मुसलमानों की पहचान करने और लोगों को उनसे सामान न खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने जैसा है। इस प्रकार का आर्थिक बहिष्कार समाज के लिए अनुचित है। दरअसल, यह पीएम मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मंत्र के खिलाफ है।” उन्होंने इस फैसले को वापस लेने की मांग की।
Kanwar Yatra Controversy: केसी त्यागी का कहना है कि इस तरह के फैसले से समाज में विभाजन और असंतोष बढ़ेगा, जो किसी भी प्रकार से सकारात्मक नहीं है। उनका मानना है कि सरकार को ऐसे निर्णय लेने से पहले सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर ध्यान देना चाहिए। इस विवादित फैसले से न केवल मुसलमानों बल्कि समूचे समाज में असुरक्षा और अविश्वास की भावना उत्पन्न हो रही है। जेडीयू ने जोर देकर कहा कि सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस लेना चाहिए और समाज में समरसता बनाए रखने के लिए सार्थक कदम उठाने चाहिए।
केसी त्यागी ने कहा, “बिहार में यूपी से भी बड़ी कांवड़ यात्रा निकलती है, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार ने कभी ऐसा आदेश पारित नहीं किया। एनडीए के सहयोगी के तौर पर हमारा फर्ज है कि हम इस मुद्दे को उठाएं। मेरी पार्टी यूपी सरकार का हिस्सा नहीं है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जेडीयू हमेशा सामाजिक समरसता और एकता को प्राथमिकता देती है, और ऐसे विवादित आदेश समाज में विभाजन पैदा कर सकते हैं।
सरकार का फैसला गैर-संवैधानिक: आरएलडी
Kanwar Yatra Controversy: यूपी में बीजेपी की सहयोगी आरएलडी ने भी योगी सरकार के फैसले के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है। आरएलडी ने कहा कि सरकार को इसे वापस लेना चाहिए, क्योंकि यह फैसला गैर-संवैधानिक है। आरएलडी के यूपी अध्यक्ष रामाशीष राय ने कहा, “इस तरह के भेदभाव और एक समुदाय के बहिष्कार से बीजेपी और राज्य का कोई भला नहीं होगा। कुछ पुलिस अधिकारी और नौकरशाह सरकार को गुमराह कर रहे हैं, और मैं मुख्यमंत्री से अपील करता हूं कि वे ऐसे आदेश को वापस लें।”
रामाशीष राय ने एक ट्वीट में कहा, “उत्तर प्रदेश प्रशासन का दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला कदम है। प्रशासन इसे वापस ले। यह गैर-संवैधानिक निर्णय है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इस प्रकार के फैसलों से समाज में असामंजस्य और विभाजन पैदा होता है, जो राज्य और समाज दोनों के लिए हानिकारक है। आरएलडी ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे फैसले से बीजेपी की छवि और राज्य की शांति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इसे तुरंत वापस लेना चाहिए।
जाति या धर्म के नाम पर किसी भी विभेद का समर्थन नहीं करता: चिराग पासवान
Kanwar Yatra Controversy: एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने मुजफ्फरनगर पुलिस के उस आदेश का खुलकर विरोध किया है, जिसमें भोजनालयों के मालिकों से उनके नाम प्रदर्शित करने की बात कही गई है। चिराग पासवान ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह जाति या धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का समर्थन नहीं करते हैं।
Kanwar Yatra Controversy: पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या वह मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश से सहमत हैं, तो उन्होंने कहा, “नहीं, मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं।” उन्होंने इस आदेश को समाज में विभाजन और असंतोष फैलाने वाला कदम बताया।
चिराग पासवान ने जोर देकर कहा कि इस प्रकार के निर्णय से समाज में शांति और सद्भाव को नुकसान पहुंचता है। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य में ऐसी नीतियों को लागू नहीं किया जाना चाहिए, जो किसी विशेष जाति या धर्म को निशाना बनाती हों।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को समाज की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए, न कि ऐसे फैसलों के जरिए विभाजन को बढ़ावा देना चाहिए। चिराग पासवान का यह बयान स्पष्ट करता है कि एलजेपी ऐसे किसी भी कदम का विरोध करेगी, जो समाज में भेदभाव और विभाजन को बढ़ावा देता हो।
Kanwar Yatra Controversy: चिराग पासवान ने कहा कि समाज में अमीर और गरीब दोनों श्रेणियों के लोग मौजूद हैं और विभिन्न जातियों एवं धर्मों के व्यक्ति इन दोनों ही श्रेणियों में आते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, “हमें इन दोनों वर्गों के लोगों के बीच की खाई को पाटने की जरूरत है। गरीबों के लिए काम करना हर सरकार की जिम्मेदारी है, जिसमें समाज के सभी वर्ग जैसे दलित, पिछड़े, ऊंची जातियां और मुस्लिम भी शामिल हैं। समाज में सभी लोग शामिल हैं, और हमें उनके लिए काम करने की आवश्यकता है।”
उन्होंने स्पष्ट किया, “जब भी जाति या धर्म के नाम पर इस तरह का विभेद होता है, तो मैं न तो इसका समर्थन करता हूं और न ही इसे प्रोत्साहित करता हूं। मुझे नहीं लगता कि मेरी उम्र का कोई भी शिक्षित युवा, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से आता हो, ऐसी चीजों से प्रभावित होता है।” चिराग पासवान ने यह भी कहा कि समाज में एकता और समरसता बनाए रखने के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए और किसी भी प्रकार के भेदभाव को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उनकी सोच स्पष्ट है कि समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए समान अवसर और समान अधिकार होने चाहिए।
नकवी ने भी की फैसले की आलोचना, फिर मारी पलटी
Kanwar Yatra Controversy: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने योगी सरकार के फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गड़बड़ी वाली अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं। आस्था का सम्मान होना ही चाहिए, पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए।”
हालांकि, बाद में उन्होंने अपना स्टैंड बदलते हुए कहा कि यह एक स्थानीय प्रशासनिक निर्देश था और राज्य सरकार ने इस पर स्पष्टीकरण जारी किया है। नकवी ने कहा, “ये निर्देश कांवड़ यात्रियों की आस्था का सम्मान करने के लिए जारी किए गए थे, इसे सांप्रदायिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।”
Kanwar Yatra Controversy: उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रशासनिक आदेशों का उद्देश्य किसी भी समुदाय के प्रति भेदभाव या असमानता को बढ़ावा देना नहीं होना चाहिए। नकवी का कहना है कि ऐसे निर्णयों को सावधानीपूर्वक और संवेदनशीलता के साथ लिया जाना चाहिए ताकि समाज में एकता और समरसता बनी रहे। उनके इस बयान से स्पष्ट होता है कि बीजेपी के अंदर भी इस मुद्दे पर मतभेद हैं और पार्टी को इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।
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