Supreme Court of ED Arrest: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश , आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले कोर्ट से इजाजत लेनी होगी, ईडी को सूचना |
“सुप्रीम कोर्ट ने कहा, PMLA के तहत आरोपी को कोर्ट के संज्ञान में केस होने पर ही गिरफ्तार किया जा सकेगा, ED को नहीं होगा अवश्यकता”
Supreme Court of ED Arrest: सुप्रीम कोर्ट ने पैसे लॉन्ड्रिंग के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर कोर्ट के संज्ञान में कोई केस है, तो फिर भी भारतीय डेलेट्स मेंनेजमेंट (PMLA) के तहत आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा। इस निर्णय के बाद से, इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का स्तर बढ़ गया है।
Supreme Court of ED Arrest: इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य यह है कि ED (ईडी) जैसे निदेशालयों को अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करने से रोका जा सके। यहां तक कि जब ED को आधिकारिक सुपूर्ति मिल जाती है, तो भी उन्हें आरोपी को अरेस्ट करने के लिए कोर्ट की मंजूरी लेनी होगी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि न्यायिक प्रक्रिया के दायरे का बाहर जाने पर भी ED को अपने कार्यों में सावधानी बरतनी होगी।
Supreme Court of ED Arrest: इस निर्णय से सामाजिक और न्यायिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण संदेश दिया गया है। इससे सामान्य लोगों को भी यह विश्वास मिलेगा कि न्यायिक प्रक्रिया में उनके हक की रक्षा होगी और कोई भी अधिकारी अधिकार का दुरुपयोग नहीं कर पाएगा।
Supreme Court of ED Arrest: इस निर्णय का पूरा लाभ यही है कि यह बताता है कि आर्थिक अपराधों के मामलों में भी कानून का सम्मान होना चाहिए, और वहां तक कि सरकारी निदेशालयों को भी न्यायिक प्रक्रिया में रहना चाहिए। इससे समाज में विश्वास और न्याय के प्रति आत्मविश्वास बढ़ेगा।
Supreme Court of ED Arrest: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अगर विशेष अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत का संज्ञान ले लिया है, तो ईडी ‘प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट’ (पीएमएलए) के सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। ईडी को आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए विशेष अदालत में आवेदन करना होगा।
Supreme Court of ED Arrest: यह निर्णय मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को स्पष्टता और संवेदनशीलता से देखने का संकेत देता है। अब आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए ईडी को कोर्ट की मंजूरी की आवश्यकता है, जो कि न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्टता और निष्क्रियता को बढ़ावा देगा। इससे न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता और विश्वास स्थापित होगा, जो समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।
Supreme Court of ED Arrest: सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जब ईडी ने जाँच करते समय किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है, तो ऐसे आरोपी को बेल मिलने के लिए पीएमएलए में दी गई कठोर शर्तें लागू नहीं होंगी। अदालत ने कहा कि जब चार्जशीट पर न्यायिक संज्ञान लेने के बाद ऐसे आरोपी को समन जारी किया जाए और वह पेश हो जाए, तो उसे बेल दी जानी चाहिए। धारा 45 में दी गई जमानत की दोहरी शर्त उस पर लागू नहीं होगी। अगर ईडी चार्जशीट पेश करने के बाद भी उस आरोपी को गिरफ्तार करना चाहती है, तो उसे अदालत से इजाजत लेनी होगी।
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ईडी की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
Supreme Court of ED Arrest: लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने पीएमएलए कानून के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। पीठ ने कहा, “अगर धारा 44 के तहत शिकायत के आधार पर पीएमएलए की धारा 4 के तहत अपराध का संज्ञान लिया जा चुका है, तब ईडी और उसके अधिकारी शिकायत में आरोपी बनाए गए व्यक्ति को धारा 19 के तहत गिरफ्तार करने के लिए मिली शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।”
Supreme Court of ED Arrest: इस निर्णय से साफ होता है कि पीएमएलए के तहत ईडी को आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए कोर्ट की मंजूरी लेनी होगी। धारा 19 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल शिकायत के आधार पर नहीं किया जा सकता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया को सुरक्षित बनाए रखने में मदद मिलेगी।
पीठ ने आगे कहा, “अगर ईडी अपराध की आगे की जांच में आरोपी की हिरासत चाहती है और आरोपी पहले ही समन जारी होने पर पेश हो चुका है, तो ऐसे हालात में ईडी को विशेष अदालत में आवेदन कर आरोपी की हिरासत मांगनी होगी।”
Supreme Court of ED Arrest: इस निर्णय से साफ़ होता है कि अगर ईडी को आरोपी को गिरफ़्तार करने के लिए आगे की जांच की आवश्यकता होती है तब वह विशेष अदालत में आवेदन करना होगा। यह स्थिति न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्टता और विश्वास स्थापित करती है, जिससे कोर्ट के निर्णयों की सराहना और समाज में न्याय की विश्वासीयता मिलती है।
अदालत ने कहा, “आरोपी का पक्ष सुनने के बाद विशेष अदालत को आवेदन पर आदेश पारित करना होगा। ईडी के आवेदन पर सुनवाई करते समय अदालत केवल तभी हिरासत की इजाजत दे सकती है, जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो कि कस्टडी में पूछताछ जरूरी है। भले ही आरोपी को धारा 19 के तहत कभी गिरफ्तार नहीं किया गया हो।”
Supreme Court of ED Arrest: यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में बेहतरी की दिशा में है। यह सुनिश्चित करता है कि हिरासत की स्थिति में केवल सुरक्षितता के मामले में ही इस्तेमाल किया जाता है। आरोपी के अधिकारों का सम्मान करते हुए, यह निर्णय न्यायिक सुरक्षा के मामले में सावधानी बरतने का संदेश देता है।
Supreme Court of ED Arrest: इससे सामाजिक न्याय के प्रति विश्वास में भी बढ़ोतरी होगी। आरोपी के पक्ष का यथार्थ सुनने के बाद केवल संवेदनशीलता और न्याय की आदान-प्रदान से ही सही निर्णय लिया जाएगा। इससे न्यायिक प्रक्रिया में सुधार होगा और समाज का विश्वास भी बढ़ेगा।
साथ ही, ऐसे निर्णय से यह संकेत मिलता है कि न्यायिक प्रक्रिया में कस्टडी और हिरासत की स्थिति में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इससे दोनों पक्षों के हिकमतनामे को सम्मान मिलेगा और न्यायिक प्रक्रिया को समर्थन भी मिलेगा।
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