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State Bar Council : न्यायालय ने बार काउंसिल को वकीलों के पंजीकरण शुल्क पर रोक लगाई!

State Bar Council : बार काउंसिल को वकीलों के पंजीकरण शुल्क पर अत्यधिक शुल्क लगाने से रोकते हुए न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि शुल्क को एक मानक सीमा के भीतर रखा जाना चाहिए।

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State Bar Council : न्यायालय ने बार काउंसिल को वकीलों के पंजीकरण शुल्क पर रोक लगाई!

State Bar Council उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि राज्यों की ‘बार काउंसिल’ वकीलों के पंजीकरण के लिए अत्यधिक शुल्क नहीं ले सकतीं। विशेषकर सामान्य और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) श्रेणी के विधि स्नातकों के लिए, शुल्क क्रमश: 650 रुपये और 125 रुपये से अधिक नहीं लिया जा सकता है। यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली और विधि शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है।

फैसले की पृष्ठभूमि

State Bar Council : उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय एक लंबे समय से चल रहे विवाद पर आधारित है जिसमें विभिन्न राज्य बार काउंसिलों द्वारा पंजीकरण शुल्क को लेकर असमान और अत्यधिक शुल्क लेने की शिकायतें आई थीं। विशेषकर एससी-एसटी श्रेणी के विधि स्नातकों को न्याय प्राप्त करने में कठिनाइयाँ आ रही थीं क्योंकि उन्हें वकील के रूप में पंजीकरण के लिए अधिक शुल्क चुकाना पड़ रहा था। यह स्थिति कानून के समानता के सिद्धांत का उल्लंघन कर रही थी।

न्यायालय का निर्णय

State Bar Council : न्यायालय ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा कि ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ (BCI) और राज्य ‘बार काउंसिल’ संसद द्वारा बनाए गए कानूनी प्रावधानों की अवहेलना नहीं कर सकतीं। बीसीआई और राज्य बार काउंसिलों को अधिवक्ता अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों का पालन करना आवश्यक है। यह अधिनियम विधि स्नातकों को वकील के रूप में पंजीकृत करने के लिए एक स्पष्ट और समान शुल्क संरचना की व्यवस्था करता है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बार काउंसिलों को शुल्क में अत्यधिक वृद्धि करने का अधिकार नहीं है और उन्हें निर्धारित सीमा के भीतर ही शुल्क लेने की अनुमति है। यह निर्णय उन विधि स्नातकों के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है जो आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं और अत्यधिक शुल्क के कारण वकील के रूप में पंजीकरण कराने में असमर्थ थे।

विधि स्नातकों की स्थिति

State Bar Council : विधि स्नातकों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय लिया है कि वकीलों के पंजीकरण के लिए निर्धारित शुल्क समान रूप से लागू होना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी विधि स्नातक, चाहे वे किसी भी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से हों, न्यायिक प्रणाली में शामिल हो सकें और कानूनी पेशे में अपनी भूमिका निभा सकें।

इस निर्णय का उद्देश्य न्यायिक क्षेत्र में समानता सुनिश्चित करना और विधि स्नातकों को किसी भी प्रकार की भेदभाव का सामना न करने देना है। विशेष रूप से एससी-एसटी वर्ग के विधि स्नातकों के लिए यह निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अक्सर आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं और अत्यधिक शुल्क उनके लिए एक बड़ी बाधा बन सकता है।

अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल्स

State Bar Council : अधिवक्ता अधिनियम, 1961, भारतीय विधिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो अधिवक्ताओं के पंजीकरण और नियमन से संबंधित प्रावधान करता है। इस अधिनियम के तहत ‘बार काउंसिल ऑफ India’ (बीसीआई) को विधि स्नातकों की पंजीकरण प्रक्रिया की देखरेख करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक राज्य में एक राज्य बार काउंसिल होती है जो स्थानीय स्तर पर वकीलों के पंजीकरण और उनके पेशेवर मानकों को सुनिश्चित करती है।

अधिवक्ता अधिनियम के तहत बीसीआई और राज्य बार काउंसिलों को एक समान और न्यायपूर्ण पंजीकरण शुल्क संरचना बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी विधि स्नातक, चाहे वे किसी भी आर्थिक या सामाजिक पृष्ठभूमि से हों, वकील के रूप में पंजीकृत हो सकें और न्यायिक प्रणाली में अपनी भूमिका निभा सकें।

फैसले का प्रभाव

State Bar Council : उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय का दूरगामी प्रभाव होगा। यह निर्णय न केवल विधि स्नातकों के लिए राहत प्रदान करेगा बल्कि न्यायिक प्रणाली में समानता और पारदर्शिता को भी बढ़ावा देगा। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्यों की बार काउंसिलों को पंजीकरण शुल्क में अत्यधिक वृद्धि करने का अधिकार नहीं है और उन्हें केवल निर्धारित सीमा के भीतर ही शुल्क लेने की अनुमति है।

इस निर्णय के बाद, यह उम्मीद की जाती है कि अन्य राज्य भी इसी प्रकार के समान शुल्क संरचना को अपनाएंगे और विधि स्नातकों के लिए न्यायिक प्रणाली में प्रवेश को आसान बनाएंगे। यह निर्णय विधि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इसे एक सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा सकता है।

निष्कर्ष

State Bar Council : उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय राज्यों की बार काउंसिलों द्वारा वकीलों के पंजीकरण के लिए अत्यधिक शुल्क लेने के मामले में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि पंजीकरण शुल्क में अत्यधिक वृद्धि की अनुमति नहीं है और सभी विधि स्नातकों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में समानता और पारदर्शिता को बढ़ावा देगा और विधि स्नातकों के लिए एक अधिक न्यायपूर्ण पंजीकरण प्रक्रिया सुनिश्चित करेगा।

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