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Politics and crime : 2004 से अब तक, भारत की राजनीति में अपराधीकरण की पूरी रिपोर्ट

Politics and crime: तमिलनाडु के 224 विधायकों में से 134 (60%) पर आपराधिक मामले दर्ज, हलफनामों के अनुसार जानकारी |

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Politics and crime: देश में चुनाव के दौरान नेताओं का अपराधीकरण एक बार फिर से चर्चा का प्रमुख विषय बन जाता है। वर्षों से अपराध और राजनीति के बीच गहराते संबंधों पर अनेक बहसें हो चुकी हैं और इस पर कई लेख भी लिखे जा चुके हैं। हालांकि, इन बहसों और लेखों के बावजूद हर चुनाव के पहले अपराध और राजनीति की बढ़ती नजदीकियां साफ नजर आती हैं।

Politics and crime: राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण अब कोई नई बात नहीं रह गई है। यह ऐसा मुद्दा है जो हर चुनाव में उभरकर सामने आता है, जिससे जनता और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चिंता बढ़ जाती है। नेताओं का आपराधिक पृष्ठभूमि होना और चुनाव लड़ने के लिए उनके द्वारा दिए गए हलफनामों में इसकी पुष्टि होना आम हो गया है।

इस मुद्दे को लेकर कानून और व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न उठते हैं और साथ ही साथ लोकतंत्र की पवित्रता पर भी। जब अपराधी पृष्ठभूमि वाले लोग सत्ता में आते हैं, तो इससे नीति निर्माण और प्रशासन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, देश के राजनीतिक परिदृश्य को सुधारने के लिए इस गंभीर समस्या का समाधान ढूंढना आवश्यक है, ताकि लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया जा सके और देश की जनता को एक ईमानदार और पारदर्शी शासन मिल सके।

Politics and crime: एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में संसद के लिए चुने गए आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या 2004 से लगातार बढ़ रही है। 2004 में, 24% सांसद ऐसे थे जिन पर आपराधिक मामले लंबित थे। यह संख्या 2019 में बढ़कर 43% हो गई। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि देश की राजनीति में अपराधियों की भागीदारी तेजी से बढ़ी है।

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Politics and crime: इस बढ़ोतरी के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार अक्सर धन और प्रभाव के मामले में मजबूत होते हैं, जिससे वे चुनावी अभियानों में अधिक संसाधन लगा सकते हैं। इसके अलावा, राजनीतिक दल भी जीत की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं, जो उनकी जीत सुनिश्चित कर सकते हैं, भले ही उनकी छवि संदिग्ध हो।

Politics and crime: यह स्थिति लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं का संसद में बढ़ता प्रभाव न केवल नीति निर्माण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, बल्कि जनता का विश्वास भी कमजोर करता है। इस समस्या का समाधान ढूंढना आवश्यक है ताकि देश की राजनीति स्वच्छ और निष्पक्ष बनी रह सके और जनता का विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बहाल हो सके।

Politics and crime: साल 2009 की लोकसभा में 30% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जो 2014 की लोकसभा में बढ़कर 34% हो गए। फरवरी 2023 में दायर एक याचिका में दावा किया गया कि 2009 के बाद से आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 44% की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े दिखाते हैं कि भारतीय राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की भागीदारी बढ़ रही है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े होते हैं और सुधार की आवश्यकता महसूस होती है।

Politics and crime: साल 2019 के लोकसभा चुनावों में, कुल 159 सांसद ऐसे थे जिन्होंने अपने खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, और महिलाओं के साथ बलात्कार जैसे गंभीर आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इनमें से भाजपा के 64 सांसद, कांग्रेस के 97 में से 8 और राजद के 9 में से 6 सांसद थे, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।

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Politics and crime: यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता सिर्फ एक पार्टी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में फैले हुए हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दे रहे हैं? यह स्थिति लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है क्योंकि आपराधिक मामलों में शामिल नेता नीति निर्माण और शासन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

Politics and crime: इस समस्या के समाधान के लिए राजनीतिक दलों को अधिक सतर्क और जिम्मेदार होने की आवश्यकता है। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने से बचना और साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को बढ़ावा देना आवश्यक है, ताकि जनता का लोकतंत्र पर विश्वास बना रहे और देश की राजनीति स्वच्छ और पारदर्शी हो सके।

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विधानसभा में 44% विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज 

Politics and crime: चुनाव से पहले प्रचार के दौरान देश के नेता अक्सर भारत से अपराधियों को जड़ से खत्म करने जैसे वादे करते हैं। हालांकि, देश की राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों का प्रवेश कम नहीं हो रहा है। ये अपराधी पहले पार्षद बनते हैं, फिर विधायक और अंततः सांसद के रूप में निर्वाचित हो जाते हैं।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में लगभग 44 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह आंकड़ा दिखाता है कि राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

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Politics and crime: इस स्थिति से निपटने के लिए राजनीतिक दलों को अधिक सतर्क और जिम्मेदार होना चाहिए। साफ छवि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता देना आवश्यक है ताकि राजनीति का अपराधीकरण रोका जा सके। इसके अलावा, कानूनी और चुनावी सुधारों की भी आवश्यकता है ताकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का चुनाव में हिस्सा लेना मुश्किल हो जाए। इस प्रकार, एक स्वच्छ और पारदर्शी राजनीतिक वातावरण बनाना संभव हो सकेगा, जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है।

Politics and crime: एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) ने एक अध्ययन के दौरान सभी राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र शासित प्रदेशों के वर्तमान विधायकों के स्व-शपथ पत्रों की जांच की। इस विश्लेषण में भारत के 28 राज्य विधानसभाओं और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में सेवारत 4,033 व्यक्तियों में से 4,001 विधायकों को शामिल किया गया।

Politics and crime: इस विश्लेषण के अनुसार, 4,001 विधायकों में से 1,136 विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत की राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की संख्या चिंताजनक रूप से अधिक है।

Politics and crime: यह स्थिति न केवल लोकतंत्र के लिए हानिकारक है, बल्कि जनता का विश्वास भी कमजोर करती है। राजनीतिक दलों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा न करें जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक हो। इसके साथ ही, चुनावी सुधारों की भी आवश्यकता है ताकि आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश रोका जा सके।

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एक स्वच्छ और पारदर्शी राजनीतिक व्यवस्था बनाने के लिए आवश्यक है कि सभी राजनीतिक दल और समाज मिलकर इस समस्या का समाधान करें, जिससे लोकतंत्र की नींव मजबूत हो और जनता का विश्वास बहाल हो सके।

राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण

 

18वीं लोकसभा चुनाव का हाल भी जान लीजिये 

Politics and crime: भारत में फिलहाल चुनाव चल रहे हैं, जिसमें सात चरणों के मतदान में से चार चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। पहले और दूसरे चरण के चुनावों में भी आपराधिक मामले दर्ज प्रत्याशियों की संख्या काफी अधिक है।

Politics and crime: पहले चरण के चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 77 उम्मीदवारों में से 28 उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, और इनमें से 14 उम्मीदवारों पर गंभीर अपराधों के मामले भी दर्ज हैं। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चुनाव में हिस्सा लेना अभी भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

Politics and crime: यह स्थिति न केवल लोकतंत्र की पवित्रता को चुनौती देती है, बल्कि जनता का विश्वास भी कमजोर करती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अपने उम्मीदवारों का चयन करते समय उनके आपराधिक रिकॉर्ड को गंभीरता से जांचें और साफ छवि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दें। इसके अलावा, चुनावी सुधारों और कड़े कानूनी उपायों की आवश्यकता है ताकि आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश रोका जा सके।

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इस प्रकार, एक स्वच्छ और पारदर्शी राजनीतिक प्रणाली का निर्माण संभव हो सकेगा, जो लोकतंत्र की मजबूती और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

Politics and crime: वायनाड से राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार के सुरेन्द्रन के खिलाफ 242 मामले दर्ज हैं, हालांकि इनमें से 237 मामले सबरीमाला प्रकरण से जुड़े आंदोलन को लेकर हैं। इसी तरह, पहले चरण के चुनाव में कांग्रेस के 56 उम्मीदवारों में से 19 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं और 8 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

Politics and crime: दूसरे चरण की स्थिति भी कमोबेश यही है, और यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले चरणों में भी यह स्थिति बनी रहेगी। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि विभिन्न राजनीतिक दलों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चुनाव में हिस्सा लेना जारी है।

इस स्थिति का समाधान राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है, उन्हें अपने उम्मीदवारों का चयन करते समय अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए। साफ छवि वाले और कानून का सम्मान करने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, चुनावी सुधारों की भी आवश्यकता है ताकि आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश रोका जा सके।

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Politics and crime: एक स्वच्छ और पारदर्शी राजनीतिक प्रणाली का निर्माण आवश्यक है ताकि लोकतंत्र की नींव मजबूत हो सके और जनता का विश्वास बनाए रखा जा सके। यह सुधार भारतीय राजनीति में सकारात्मक बदलाव ला सकता है और देश के विकास में सहायक हो सकता है।

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राजनीति में क्यों होती है अपराध की एंट्री 

Politics and crime: राजनीति में अपराधियों के आने की सबसे बड़ी वजह पैसा और नेटवर्किंग मानी जाती है। चुनाव लड़ने के लिए कैंडिडेट और पार्टियों को जितने पैसे की जरूरत होती है, वो एक आम जनता के बस की बात नहीं है। इसके साथ ही उन अपराधियों का नेटवर्किंग भी काफी मजबूत रहता है। यही दो सबसे बड़ी वजहों में शामिल है जिसके कारण राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देती है।

Politics and crime: इनमें कई अपराधी चुनाव जीत कर रॉबिनहुड की छवि बना लेते हैं। इस प्रकार कुछ अपराधियों का नेटवर्किंग इतना मजबूत होता है कि वे राजनीतिक दलों की चापलूसी कर अपने अपराधों को छुपा लेते हैं। यह तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे न केवल लोकतंत्र की मजबूती को नुकसान होता है बल्कि समाज को भी नुकसान पहुंचता है।

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इसलिए, राजनीतिक पार्टियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल साफ और ईमानदार उम्मीदवारों को ही चुने जो समाज के हित में काम कर सकें। अपराधियों को टिकट देकर न केवल राजनीतिक पार्टियों की छवि पर दाग लगता है, बल्कि यह समाज को भी अप्रत्याशित हानि पहुंचाता है।

परेशान करने वाला है ये डेटा 

Politics and crime: भारत में साल 2008 से 2012 तक विधानसभा चुनाव में गंभीर आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की संख्या 9.3 प्रतिशत थी। अब साल 2018-22 तक यही संख्या बढ़कर 14.5 प्रतिशत हो गया था।

Politics and crime: 2008 से 2022 के बीच सबसे ज्यादा आपराधिक मामले वाले उम्मीदवार केरल में उतरे थे। उस वक्त कुल प्रत्याशियों का 34 प्रतिशत दागी उम्मीदवार मैदान में उतरा था। इसके बाद बिहार में 32 प्रतिशत और झारखंड में 31 प्रतिशत दागी उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई थी।

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Politics and crime: यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि राजनीति में आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों का आगे बढ़ना बड़ी चिंता का विषय है। इससे न केवल चुनाव प्रक्रिया की स्वच्छता पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों को भी कमजोर किया जा सकता है। इसलिए, इस दिशा में सुधार की जरूरत है ताकि राजनीति एक स्वच्छ, ईमानदार और निष्पक्ष मंच बन सके।

केवल एक राज्य में 143 आपराधिक मामले वाले नेता 

Politics and crime: साल 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में विधानसभा चुनाव में कुल 402 विधायकों में से 143 ने चुनावी हलफनामे में खुद पर आपराधिक मामलों के दर्ज होने की जानकारी दी थी। इसी साल, बीजेपी ने भारी बहुमत हासिल कर सत्ता में आई थी, और इसी पार्टी के 37 प्रतिशत विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज थे।

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वहीं, यूपी के सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की बात करें तो यहां 47 विधायकों में से 14 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि बीएसपी के 19 में से पांच विधायक ऐसे हैं जिन पर किसी न किसी मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज हैं। कांग्रेस के सात विधायकों में से एक पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह स्थिति दिखाती है कि राजनीति में आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों का आगे बढ़ना चिंताजनक है और इसे सुधारने की जरूरत है।

किस राज्य में सबसे ज्यादा आपराधिक मामले वाले 

केरल: केरल में कुल 135 विधायकों में से 95 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.  यानी केरल के 70 प्रतिशत विधायक दागी है. केरल में संसदीय सदस्यों के आपराधिक मामलों का संख्यात्मक विश्लेषण चिंता का विषय बन चुका है। जब तक ये मामले स्पष्ट नहीं होंगे, लोकतंत्र की ख्याति पर धब्बा लगेगा। कानून के तहत निर्दोषता को बनाए रखना एक प्रमुख दायित्व है। यह ना केवल संसदीय सदस्यों के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। केरल के इस संदर्भ में, आपराधिक मामलों के खिलाफ निर्दोषता की संवेदनशीलता बढ़ाना आवश्यक है ताकि समाज में भरोसा और संवाद बना रहे।

बिहार: बिहार में विधायकों की आपराधिक पृष्ठभूमि एक गंभीर मुद्दा है। राज्य की विधानसभा में 242 विधायकों में से 161 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल विधायकों का 67 प्रतिशत है। इस स्थिति ने बिहार की राजनीतिक प्रणाली और विधायकों की साख पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण के लिए आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का चरित्र साफ-सुथरा हो। इसके बिना, जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है और शासन की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। समाज और देश के विकास के लिए ईमानदार और निष्कलंक प्रतिनिधियों का चुनाव आवश्यक है।

दिल्ली: राजधानी दिल्ली की विधानसभा में 70 विधायकों में से 44 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल विधायकों का 63 प्रतिशत है। यह स्थिति दिल्ली की राजनीति के लिए चिंताजनक है। ऐसे मामलों की अधिकता ने दिल्ली की राजनीतिक प्रणाली और विधायकों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साफ-सुथरी राजनीति और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधि ईमानदार और निष्कलंक हों। विधायकों की पृष्ठभूमि का जांचा जाना और पारदर्शिता बनाए रखना लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र की विधानसभा में कुल 284 विधायकों में से 175 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल विधायकों का लगभग 62 प्रतिशत है। यह स्थिति राज्य की राजनीतिक परिदृश्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है। विधायकों की इस आपराधिक पृष्ठभूमि ने महाराष्ट्र की राजनीति की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। लोकतंत्र की मजबूती और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधि स्वच्छ छवि वाले हों। आपराधिक मामलों में लिप्त विधायकों की संख्या कम करने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए ताकि शासन प्रणाली पारदर्शी और प्रभावी हो सके।

तेलंगाना: तेलंगाना की विधानसभा में कुल 118 विधायकों में से 72 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल विधायकों का 61 प्रतिशत है। यह स्थिति राज्य की राजनीति के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। विधायकों की इस पृष्ठभूमि ने तेलंगाना की राजनीतिक साख को प्रभावित किया है। लोकतंत्र की मजबूती और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधि स्वच्छ छवि वाले हों। आपराधिक मामलों में शामिल विधायकों की संख्या कम करने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि शासन प्रणाली पारदर्शी और प्रभावी हो सके।

तमिलनाडु: तमिलनाडु की विधानसभा में कुल 224 विधायकों में से 134 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल विधायकों का 60 प्रतिशत है। इन विधायकों ने अपने ऊपर चल रहे मामलों की जानकारी अपने हलफनामों में दी थी। यह स्थिति राज्य की राजनीतिक प्रणाली के लिए चिंता का विषय है। लोकतंत्र की मजबूती और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधि ईमानदार और निष्कलंक हों। आपराधिक मामलों में शामिल विधायकों की संख्या को कम करने के लिए प्रभावी और पारदर्शी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि शासन प्रणाली स्वच्छ और विश्वसनीय हो सके।

राज्य में सबसे ज्यादा आपराधिक मामले वाले

राजनीति के अपराधीकरण का क्या अर्थ है?

Politics and crime: राजनीति का अपराधीकरण तब होता है जब ऐसे व्यक्ति, जिन पर आपराधिक आरोप हों या जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक हो, राजनेता बन जाते हैं और महत्त्वपूर्ण पदों एवं दायित्वों के लिए चुन लिए जाते हैं। यह प्रक्रिया लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। चुनावों में निष्पक्षता, जवाबदेही और कानून का पालन जैसे सिद्धांतों पर आघात पहुंचता है। जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग सत्ता में आते हैं, तो वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित करने, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और अपने व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए कर सकते हैं।

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Politics and crime: यह स्थिति न केवल जनता के विश्वास को कमजोर करती है, बल्कि शासन की गुणवत्ता और कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। जब कानून निर्माता स्वयं आपराधिक मामलों में लिप्त होते हैं, तो वे प्रभावी रूप से कानून और व्यवस्था बनाए रखने में असफल हो सकते हैं।

Politics and crime: इस समस्या से निपटने के लिए चुनावी सुधार और कानूनी प्रावधान आवश्यक हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सख्त नियमों और पारदर्शी प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। इसके साथ ही, जनता को जागरूक करना और उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की जानकारी देना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे सही प्रतिनिधि चुन सकें।

Politics and crime: राजनीति का अपराधीकरण हमारे समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। चुनावों में निष्पक्षता, कानून का पालन और जवाबदेही जैसे मूलभूत सिद्धांत इस प्रक्रिया से कमजोर हो जाते हैं। जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग राजनीति में प्रवेश करते हैं और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते हैं, तो वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कानूनी प्रक्रियाओं को बाधित करने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए कर सकते हैं।

Politics and crime: इसका सीधा असर शासन की गुणवत्ता पर पड़ता है। जनता का विश्वास कमजोर हो जाता है, और लोग सरकार तथा उसके संस्थानों पर संदेह करने लगते हैं। ऐसे नेताओं की मौजूदगी से नीतियों और निर्णयों में पारदर्शिता की कमी हो जाती है, जिससे जनता के हितों की अनदेखी होती है।

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Politics and crime: इस समस्या से निपटने के लिए प्रभावी चुनावी सुधार और सख्त कानूनी प्रावधानों की आवश्यकता है। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सख्त नियमों और पारदर्शी प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिए। इसके साथ ही, जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे सही जानकारी के आधार पर अपने प्रतिनिधि चुन सकें। इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी और शासन प्रणाली अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी बन सकेगी।

 

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