Indian Property Laws: सीजेआई का बयान; आर्थिक ढांचे में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका, हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता |
Indian Property Laws: सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार, 5 नवंबर को यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि सरकार को हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मानने और जनहित में उसका वितरण करने का अधिकार नहीं है। इस फैसले का नेतृत्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने किया, और यह निर्णय संपत्ति के अधिकार को लेकर आए लंबे समय से चले आ रहे विवाद को सुलझाता है।
Indian Property Laws: संविधान पीठ ने मई 2024 में हुई सुनवाई के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस सुनवाई में एक अहम मुद्दा था कि क्या संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के अनुसार सरकार निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मानकर उसे जनहित में पुनर्वितरित कर सकती है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया कि इस अनुच्छेद का अर्थ यह नहीं है कि सरकार बिना उचित कारण निजी संपत्ति को अपने अधिकार में ले सकती है।
Indian Property Laws: इस फैसले ने 1978 के बाद के उन पूर्व निर्णयों को पलट दिया, जिसमें सरकार को समाजवादी दृष्टिकोण के तहत जनकल्याण के लिए सभी निजी संपत्तियों पर अधिकार रखने की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी संपत्ति का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है, और इसे सामुदायिक संपत्ति का रूप देना उचित नहीं है।
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिकार और जनहित के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है। यह फैसला देश के संपत्ति संबंधी कानूनों को एक नई दिशा देता है, जिसमें निजी संपत्ति का सम्मान और व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण किया गया है|
‘पुराने फैसले एक आर्थिक विचारधारा से थे प्रेरित’
Indian Property Laws: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत बनाए गए कानूनों की रक्षा करने वाला अनुच्छेद 31(सी) पूरी तरह सही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 39(बी) का उद्देश्य सार्वजनिक हित में सामुदायिक संपत्ति का वितरण सुनिश्चित करना है।
Indian Property Laws: सीजेआई ने यह भी कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। उन्होंने इस विषय पर दिए गए पूर्व के कुछ फैसलों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे एक विशेष आर्थिक विचारधारा से प्रेरित थे, जो समाजवाद पर आधारित थी। लेकिन मौजूदा आर्थिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य में निजी संपत्ति का अधिकार भी अहम है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति और सामुदायिक हित के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
‘हर निजी संपत्ति को नहीं कह सकते सार्वजनिक’
Indian Property Laws: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि वर्तमान आर्थिक ढांचे में निजी क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति का दर्जा नहीं दिया जा सकता। इसके लिए संपत्ति की प्रकृति, सार्वजनिक हित में उसकी जरूरत और उसकी उपलब्धता जैसे पहलुओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
Indian Property Laws: सीजेआई ने बताया कि किसी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति का दर्जा तभी मिल सकता है, जब वह समाज के व्यापक लाभ के लिए उपयोगी हो और उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक हो। उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौजूदा आर्थिक तंत्र में निजी संपत्ति का सम्मान और उसकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है, और इसे सामुदायिक संपत्ति के रूप में मान्यता देना तभी उचित होगा, जब उसके पीछे जनहित से जुड़ी ठोस वजहें हों।यह फैसला निजी और सामुदायिक संपत्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए अहम है, जिससे व्यक्तिगत अधिकार और सामुदायिक हित, दोनों का संरक्षण संभव हो सके।
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