India In GDP : भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?
India In GDP : GDP ग्रोथ से ही पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था ने सालभर में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है अगर किसी साल जीडीपी डेटा में सुस्ती दिखी तो समझ जाइये की उस वित्तीय वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त रही है
किसी देश की GDP की रफ्तार बढ़ने का क्या मतलब है
India In GDP: देश में एक साल में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कहते हैं। रिसर्च और रेटिंग फर्म केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहना है कि जीडीपी ठीक वैसी ही होती है, जैसे ‘किसी छात्र की मार्कशीट’ होती है।
हेगड़े के अनुसार, जिस तरह किसी छात्र के सालभर का प्रदर्शन देखने के लिए मार्कशीट की जरूरत पड़ती है, उसी तरह जीडीपी भारत की आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है। जीडीपी रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के किस सेक्टर के कारण देश की अर्थव्यवस्था में तेजी या गिरावट आई है।
जीडीपी ग्रोथ से ही पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था ने सालभर में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है। अगर किसी साल जीडीपी डेटा में सुस्ती दिखी तो समझ जाइये कि उस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त रही है। इसका मतलब है कि भारत ने पिछले साल की तुलना में पर्याप्त सामान का उत्पादन नहीं किया और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही। इस तरह, जीडीपी एक महत्वपूर्ण संकेतक है जो देश की आर्थिक सेहत का आकलन करता है।
साल में चार बार किया जाता है जीडीपी का आकलन
India In GDP: भारत में जीडीपी का आकलन साल में चार बार किया जाता है और ये आकलन करते हैं सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ). यानी इस देश में हर तिमाही में जीडीपी का आकलन किया जाता है. हर साल यह सालाना जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े जारी करता है.
कैसे किया जाता है जीडीपी का आकलन
India In GDP: भारत में जीडीपी का आकलन कंजम्पशन एक्सपेंडिचर, गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर, इन्वेस्टमेंट एक्सपेंडिचर, नेट एक्सपोर्ट्स, इस चार घटकों के जरिए किया जाता है. इतना ही नहीं जीडीपी का आकलन नॉमिनल और रियल टर्म में होता है.
नॉमिनल जीडीपी (India In GDP) और रियल जीडीपी,(India In GDP) दोनों ही आर्थिक गतिविधियों की मापदंड हैं, लेकिन इनकी गणना का तरीका अलग होता है। नॉमिनल जीडीपी तब प्राप्त होती है जब एक साल में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना मार्केट प्राइस या करंट प्राइस पर की जाती है। इसमें महंगाई की वैल्यू भी शामिल होती है, जिससे नॉमिनल जीडीपी की वैल्यू अधिक होती है।
वहीं, रियल जीडीपी (India In GDP) तब प्राप्त होती है जब सामानों और सेवाओं के मूल्य की गणना आधार वर्ष के मूल्य या स्थिर प्राइस पर की जाती है। यह महंगाई के प्रभाव को हटा देती है और वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन को दर्शाती है।
आसान भाषा में समझें तो जीडीपी के डेटा को आठ प्रमुख सेक्टरों से इकट्ठा किया जाता है: कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रिसिटी, गैस सप्लाई, माइनिंग, क्वैरीइंग, वानिकी और मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी, सोशल और सार्वजनिक सेक्टर।
जीडीपी के ग्रोथ का क्या मतलब है
India In GDP: भारत में GDP ग्रोथ का मतलब है कि इस देश की आर्थिक गतिविधियां और उत्पादन की मात्रा बढ़ रही है. GDP ग्रोथ एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है जो यह दर्शाता है कि एक तिमाही या एक वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था में कितना विकास हो रहा है.
अब समझिये भारत की बढ़ती अमीरी में गरीबों को कितना फायदा हो रहा है?
India In GDP: अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े से बातचीत में बताया कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कारोबारी और अधिक पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन बढ़ाते हैं, क्योंकि वे भविष्य को लेकर आशावादी होते हैं।
हेगड़े ने यह भी कहा कि भारत की जीडीपी ग्रोथ आम जनता के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार और आम लोगों दोनों के लिए निर्णय लेने में एक अहम भूमिका निभाती है। भारत के अमीर होने से आम लोगों को विभिन्न तरीकों से लाभ होता है। इससे देश में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, जो आम लोगों की आय और जीवन स्तर में सुधार लाते हैं। यह आर्थिक वृद्धि न केवल सरकार की योजनाओं के लिए, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।
- रोजगार के अवसर: आर्थिक समृद्धि के कारण देश में विभिन्न उद्योगों, व्यवसायों, और परियोजनाओं में निवेश बढ़ रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त, सेवा क्षेत्र जैसे- बैंकिंग, आईटी, स्वास्थ्य, शिक्षा, और पर्यटन का भी विस्तार हो रहा है, जिससे रोजगार के अवसर में वृद्धि हो रही है।
- आय और जीवन स्तर में सुधार: कंपनियों और व्यवसायों की आय बढ़ने से कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि हो रही है। इससे लोगों की आय में बढ़ोतरी हो रही है, जो उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और उपभोक्ता वस्तुओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
- सरकारी राजस्व में वृद्धि और सामाजिक कल्याण: उच्च आर्थिक वृद्धि के कारण केंद्र सरकार को अधिक कर राजस्व प्राप्त होता है, जिससे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरीबी उन्मूलन जैसी सामाजिक कल्याण योजनाओं में निवेश कर सकती है।
- बुनियादी ढांचे का विकास: जीडीपी ग्रोथ का मतलब है कि देश की सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों, और बंदरगाहों का विकास हो रहा है, जिससे परिवहन की सुविधाएं बढ़ रही हैं और आवाजाही में आसानी हो रही है। स्मार्ट सिटी, ग्रामीण विद्युतीकरण, और जल आपूर्ति जैसी परियोजनाओं में निवेश बढ़ रहा है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: देश के अमीर होने के कारण सरकारी और निजी निवेश से नए स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार हो रहा है। अस्पतालों, क्लीनिकों, और चिकित्सा सुविधाओं का भी विस्तार हो रहा है, जिससे बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं।
फायदे से ज्यादा नुकसान
India In GDP: हालांकि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। 28 फरवरी को एनएसओ द्वारा जारी राष्ट्रीय आय और व्यय के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय 2014-15 में 72,805 रुपये से बढ़कर 2022-23 में 98,118 रुपये हो जाने का अनुमान है। यह लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
प्रति व्यक्ति आय की इस वृद्धि पर अर्थशास्त्री जयति घोष ने पीटीआई से कहा, “आप मौजूदा कीमतों में जीडीपी को देख रहे हैं, लेकिन अगर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाए, तो वृद्धि बहुत कम है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा आबादी के शीर्ष 10% तक ही पहुंच रहा है। इसके विपरीत, आम लोगों का औसत वेतन गिर रहा है, और वास्तविक रूप से और भी कम हो सकता है।
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट में उल्लेखित है कि 2021 में भारत में शीर्ष 1% आबादी के पास कुल संपत्ति का 40.5% से अधिक हिस्सा था, जबकि निचले 50% या 700 मिलियन लोगों के पास कुल संपत्ति का लगभग 3% था। महामारी के दौरान अमीर और भी अमीर हो गए, और उनकी संपत्ति में 121% या प्रति दिन वास्तविक रूप से 3,608 करोड़ रुपये की वृद्धि देखी गई।
इसलिए, जैसा कि पहले बताया गया है, यदि किसी देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पूरी आबादी की आय भी समान रूप से बढ़ी है। आर्थिक विकास का लाभ असमान रूप से वितरित हो रहा है, जिससे समग्र सामाजिक और आर्थिक असमानता बनी हुई है।