Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री से नियुक्ति प्रक्रिया और मोदी सरकार की नीति का विरोध विपक्षी दलों की चिंता।

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री से कैसे होती है नियुक्ति, क्यों मोदी सरकार की इस पॉलिसी का हो रहा विरोध? यहां समझिए !

Controversy in Lateral Entry
Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री से नियुक्ति प्रक्रिया और मोदी सरकार की नीति का विरोध विपक्षी दलों की चिंता।

Controversy in Lateral Entry: लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम को लेकर देशभर में विवाद और बहस का माहौल गर्म है। इस स्कीम के तहत, सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों में उच्च पदों पर प्राइवेट सेक्टर के विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा है। हालांकि, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों को आरक्षण से वंचित किया जा रहा है। इस विषय को लेकर कई बड़े नेताओं ने भी अपनी असहमति जताई है। आइए, समझते हैं कि लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम क्या है, इसकी शुरुआत कैसे हुई, और क्यों इस पर इतना विरोध हो रहा है।

लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम की शुरुआत कैसे हुई?

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम की अवधारणा नई नहीं है। इसका बीज 1966 में देश के पहले प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा बोया गया था, जिसकी अध्यक्षता मोरारजी देसाई ने की थी। इस आयोग ने प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की वकालत की और कहा कि प्रशासनिक सेवाओं में विशेष स्किल वाले लोगों की जरूरत है। हालांकि, उस समय लेटरल एंट्री (Lateral Entry) जैसी कोई स्पष्ट योजना नहीं थी, लेकिन स्किल्ड प्रोफेशनल्स की आवश्यकता पर जोर दिया गया था।

इस विचार को चार दशक बाद 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आगे बढ़ाया। यूपीए सरकार ने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया, जिसका नेतृत्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने किया। इस आयोग ने लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम का समर्थन किया और इसका उद्देश्य प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञता और विविधता लाना था। उस समय, इस स्कीम के तहत मुख्य रूप से मुख्य आर्थिक सलाहकार जैसे पदों पर नियुक्ति की गई थी।

लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से कैसे होती है नियुक्ति?

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री (Lateral Entry) का अर्थ है, प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी और स्किल्ड प्रोफेशनल्स को सीधे सरकारी पदों पर नियुक्ति देना। इस प्रक्रिया के माध्यम से, सरकार उन पदों पर नियुक्ति करती है, जो सामान्यतः भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के अधिकारियों द्वारा भरे जाते हैं।

यूपीएससी द्वारा जारी किए गए विज्ञापन के अनुसार, जिन पदों पर लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से नियुक्ति की जानी है, वे ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर/डिप्टी सेक्रेटरी के होते हैं। ये नियुक्तियां कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर की जाती हैं, जिसमें चयनित उम्मीदवारों को प्राइवेट सेक्टर में 15 सालों का अनुभव होना अनिवार्य है। इसके अलावा, उम्मीदवार की उम्र कम से कम 45 वर्ष होनी चाहिए और उसके पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की डिग्री होनी चाहिए।

लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम का विरोध क्यों हो रहा है?

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम का सबसे बड़ा विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि इस प्रक्रिया में एससी, एसटी, और ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है। विपक्षी दलों का मानना है कि इस स्कीम के माध्यम से सरकार संविधान में निहित आरक्षण के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि इस प्रक्रिया के जरिए सरकार अपने समर्थक अधिकारियों को नियुक्त कर सकती है, जिससे नीतियों के निर्माण में पक्षपात हो सकता है।

इसके अलावा, कई लोगों का यह भी कहना है कि प्राइवेट सेक्टर के लोग, जो इस प्रक्रिया के माध्यम से नौकरशाही में प्रवेश करते हैं, उन्हें सरकारी तंत्र और नियमों के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कतें हो सकती हैं। इससे न केवल प्रशासनिक कार्यक्षमता पर असर पड़ेगा, बल्कि वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों का मनोबल भी गिर सकता है।

क्या लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से वाकई आरक्षण छीनने की कोशिश की जा रही है?

Controversy in Lateral Entry : इस सवाल का जवाब देने के लिए हमें सरकार की नीतियों और उनके क्रियान्वयन को समझना होगा। 2018 में मोदी सरकार द्वारा लेटरल एंट्री (Lateral Entry) की शुरुआत की गई थी, जब यूपीएससी ने 10 ज्वाइंट सेक्रेटरी के पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे थे। इस भर्ती प्रक्रिया में एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण का प्रावधान नहीं था।

सरकार का कहना है कि लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के तहत नियुक्तियों को डेप्यूटेशन के तौर पर माना जा सकता है। इसका मतलब यह है कि जो लोग विभिन्न सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र, या स्वायत्त निकायों से आते हैं, उन्हें उनके मूल विभाग से जुड़ा हुआ माना जाएगा और उनकी नियुक्ति डेप्यूटेशन (अल्पकालिक कॉन्ट्रैक्ट सहित) के तहत होगी। इस प्रकार की नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं होता है।

हालांकि, इस तर्क को लेकर विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों में असहमति है। उनका कहना है कि यह सरकार की एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके जरिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

विपक्ष का क्या कहना है?

Controversy in Lateral Entry : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस स्कीम के माध्यम से दलित, ओबीसी और आदिवासी समाज के अधिकारों पर हमला कर रही है। उनका कहना है कि यह स्कीम सरकार की उस नीति का हिस्सा है, जिसके जरिए बहुजनों का आरक्षण छीना जा रहा है।

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के माध्यम से सरकार अपने चहेते अधिकारियों को उच्च पदों पर नियुक्त कर सकती है, जिससे नीतियों का निर्माण जनहित में न होकर कुछ खास लोगों के हित में किया जा सकता है। उन्होंने इस स्कीम को लोकतंत्र पर हमला बताया है और कहा कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए जनता के अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के पक्ष में तर्क

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम के पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञता और विविधता लाई जा सकती है। सरकार के अनुसार, प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी लोग सरकारी तंत्र में नई सोच और कार्यप्रणाली ला सकते हैं, जिससे नीतियों का निर्माण और उनके क्रियान्वयन में सुधार हो सकता है।

इसके अलावा, लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के समर्थक यह भी तर्क देते हैं कि प्राइवेट सेक्टर के लोग अधिक कार्यकुशल होते हैं और वे समय के साथ बदलती जरूरतों के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं। वे सरकारी तंत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे प्रशासनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

निष्कर्ष

Controversy in Lateral Entry : लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम को लेकर हो रही बहस कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करती है। एक तरफ, जहां इस स्कीम के समर्थक इसे प्रशासनिक सेवाओं में सुधार और विशेषज्ञता लाने का एक माध्यम मानते हैं, वहीं दूसरी तरफ, विपक्षी दल और सामाजिक संगठन इसे संविधान में निहित आरक्षण के अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं।

यह मुद्दा सिर्फ आरक्षण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इससे देश की नौकरशाही और उसकी कार्यप्रणाली पर भी बड़ा असर पड़ सकता है। लेटरल एंट्री (Lateral Entry) स्कीम के जरिए सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि विशेषज्ञता और विविधता के नाम पर सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का हनन न हो। केवल समय ही बताएगा कि यह स्कीम भारतीय प्रशासनिक तंत्र में सुधार लाने में सफल होती है या नहीं। लेकिन तब तक, यह विवाद और बहस का विषय बना रहेगा।

राहुल गांधी ने कहा, लेटरल एंट्री से दलितों-आदिवासियों पर हमला, BJP आरक्षण खत्म करने की कोशिश में।”

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