प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भारत में शरण लेने वाली Sheikh Hasina; 1975 में परिवार के नरसंहार के बाद भी भारत आईं थीं |
Sheikh Hasina ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भारत में अस्थाई शरण ले ली है। यह पहली बार नहीं है जब हसीना संकट का सामना कर रही हैं। 1975 में उनके पिता और परिवार के 18 सदस्यों की हत्या के बाद भी उन्होंने भारत में शरण ली थी।
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर फैली हिंसा और विरोध प्रदर्शन के कारण शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सरकार गिरने के बाद हसीना भारत आईं और उन्होंने ब्रिटेन से राजनीतिक शरण की मांग की है। जब तक ब्रिटेन उन्हें शरण नहीं देता, हसीना भारत में ही रहेंगी। भारत सरकार ने उनकी सरकार के पतन के बाद अंतरिम प्रवास की इजाजत दे दी है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब Sheikh Hasina ने इस तरह की मुसीबत से बचने के लिए भारत का रुख किया है। 1975 में उनके परिवार के खिलाफ हुए हमले के बाद भी वह भारत आई थीं, और अब फिर से संकट के समय में भारत ने उन्हें शरण दी है।
1975 में भी Sheikh Hasina और उनकी बहन ने भारत में शरण ली थी। तब वे छह साल तक दिल्ली में रहीं। 15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक, शेख मुजीबुर्रहमान, की उनके घर पर ही हत्या कर दी गई थी। उस दिन उनके परिवार के 17 अन्य सदस्यों की भी हत्या कर दी गई थी। शेख हसीना और उनकी बहन उस समय जर्मनी में थीं, इसलिए वे इस हमले से बच गई थीं। इस त्रासदी के बाद, उन्होंने भारत का रुख किया और दिल्ली में शरण ली।
इंदिरा गांधी सरकार ने दी राजनीतिक शरण
संकट में फंसी Sheikh Hasina और उनकी बहन को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने भारत में राजनीतिक शरण दी थी। शेख हसीना और उनकी बहन छह साल तक दिल्ली में रहीं। इस दौरान उन्होंने अपने परिवार के खिलाफ हुई भयावह घटनाओं से उबरने का प्रयास किया। हालात सामान्य होने पर शेख हसीना ने बांग्लादेश लौटने का फैसला किया और अपने पिता, शेख मुजीबुर्रहमान की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए कदम बढ़ाए। उनके इस निर्णय ने बांग्लादेश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा। भारत में बिताए उन वर्षों ने शेख हसीना को मजबूत बनाया और उन्होंने अपने देश की सेवा करने के लिए अपने पिता की राह पर चलने का संकल्प लिया।
1981 में बांग्लादेश वापस लौटीं Sheikh Hasina
Sheikh Hasina को 16 फरवरी 1981 को आवामी लीग का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद, मई 1981 में वे भारत से बांग्लादेश लौट आईं। यहीं से उनके राजनीतिक करियर की नई शुरुआत हुई। हालांकि, 1980 का दशक उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा। उन्हें विभिन्न स्थानों पर हिरासत में रखा गया और नवंबर 1984 तक हाउस अरेस्ट में रहना पड़ा। इन सबके बावजूद शेख हसीना ने हार नहीं मानी और अपने संघर्ष को जारी रखा। उनके नेतृत्व में 1986 में आवामी लीग ने चुनाव में हिस्सा लिया और शेख हसीना संसद में विपक्ष की नेता चुनी गईं। उनके दृढ़ संकल्प और नेतृत्व ने उन्हें बांग्लादेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया, और उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया।
Sheikh Hasina 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनीं| उन्होंने 2001 तक सत्ता संभाली| इसके बाद 2008 में वे दोबारा पीएम बनीं. इसके बाद वे 2014, 2018 और 2024 में भी आम चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनीं|
आरक्षण को लेकर भड़की हिंसा
बांग्लादेश में हालिया हिंसा आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद भड़की। इस हिंसा में अब तक 300 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आरक्षण वाले फैसले को पलट दिया है, इसके बावजूद बांग्लादेश में हिंसा और विरोध प्रदर्शन जारी रहे। प्रदर्शनकारियों ने Sheikh Hasina के इस्तीफे की मांग को लेकर ढाका में मार्च भी निकाला। इस बढ़ते दबाव और अस्थिरता को देखते हुए, 5 अगस्त को शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। देश में बिगड़ते हालात के कारण यह कदम उठाया गया, लेकिन हिंसा और अशांति के चलते स्थिति अभी भी सामान्य नहीं हो पाई है।
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