Preservation of Sengol in Parliament : सपा सांसद द्वारा संविधान को संसद में रखने की प्रस्तावना , संसद भवन में सेंगोल का स्थान और महत्व |
Preservation of Sengol in Parliament: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 27 जून को 18वीं लोकसभा के विशेष सत्र को संबोधित करने के लिए संसद पहुंचीं। इस अवसर पर संसद भवन में उनके आगमन से अधिक चर्चा सेंगोल को लेकर हो रही थी। संसद भवन के नए उद्घाटन के साथ ही सेंगोल को बड़े ही धूमधाम से स्थापित किया गया था। इसे संसद भवन में एक महत्वपूर्ण स्थान पर रखा गया है।
Preservation of Sengol in Parliament: संसद भवन में सेंगोल को ‘केंद्रीय हॉल’ के नाम से जाना जाता है, जो संसद की आधिकारिक बैठकों के लिए उपयुक्त स्थान है। यहाँ पर सेंगोल की स्थापना संसदीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे बिलों को पारित करने, विचार-विमर्श करने और नीतियों को निर्धारित करने में। इसलिए, सेंगोल के स्थान पर संसद में व्यापक चर्चा हो रही है, जिसमें इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व भी शामिल है।
क्यों चर्चा में आया सेंगोल?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए संसद पहुंचीं। उनके संग स्वागत में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद थे। संसद भवन के द्वार पर पहुंचते ही समाजवादी पार्टी ने सेंगोल को हटाने और उसके स्थान पर संविधान की प्रति स्थापित करने की मांग की। इस मांग के बाद संविधान को फिर से संसद भवन में स्थापित करने की चर्चा में विवाद उठा है।
सेंगोल को ‘केंद्रीय हॉल’ के नाम से जाना जाता है, जो संसद की महत्वपूर्ण बैठकों के लिए निर्धारित है। इसकी हटाई जाने की मांग पर सांसदों और राजनीतिक दलों के बीच मार्गदर्शन विचार हो रहे हैं, जिससे संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार और संसद की कार्यप्रणाली को लेकर विवाद बढ़ सकता है।
संसद भवन में कहां रखा है सेंगोल?
28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया था, जबकि उस दौरान संसद भवन में सेंगोल की स्थापना भी की गई थी। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के अधीनम मठ से सेंगोल को स्वीकार किया और इसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया गया था। वर्तमान में भी सेंगोल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के आसन के पास स्थापित है।
सेंगोल को ‘केंद्रीय हॉल’ के नाम से भी जाना जाता है, जो संसद की महत्वपूर्ण बैठकों के लिए निर्धारित है। इस स्थान का चयन संसदीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण होता है, जिसे संसदीय निर्णय और विधायिका प्रक्रियाओं के दौरान उपयोग में लाया जाता है।
क्या होता है सेंगोल?
“सेंगोल” शब्द तमिल के “सेम्मई” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “नीतिपरायणता”. इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इस शब्द का उपयोग संसदीय प्रक्रियाओं में नीतियों और विधायिका के निर्धारण में किया जाता है।
सेंगोल का मुख्य आधीनम यानी पुरोहितों का आशीर्वाद भी मिला हुआ है, जो तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ से संबंधित है। इसे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया था जब उन्होंने अपना पद संभाला था। इसे संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया गया है, जिससे इसका निर्धारण और प्रयोग संसदीय निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण है।
यह भी कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार से भारत के हाथ में जब सत्ता आई थी, तब वह सौंपा गया था. ऐसे में इसे शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जाता है| इसका जनक सी. राजगोपालचारी को कहा जाता है, जो कि चोल साम्राज्य से काफी प्रेरित थे| बता दें कि चोल साम्राज्य में जब भी एक राजा से दूसरे राजा के पास सत्ता का हस्तांतरण होता था, तब इस तरह का सेंगोल दूसरे राजा को दिया जाता था|
सेंगोल का निर्माण चेन्नई के एक सुनार वुमुदी बंगारू चेट्टी ने किया था, जिसके बाद इसे लॉर्ड माउंटबैटन द्वारा 15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया| दिखने में सेंगोल पांच फीट लंबी छड़ी होती है, जिसके सबसे ऊपर भगवान शिव का वाहन कहे जाने वाली नंदी विराजमान होते हैं| नंदी न्याय व निष्पक्षता को दर्शाते हैं|
इससे भी पढ़े :-