- Election: लोकसभा चुनाव की हार पर सीएम योगी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से करेंगे चर्चा, उपचुनावों पर भी होगी बात |
- लोकसभा चुनाव के नतीजों और आगामी इलेक्शन पर चर्चा संभव
- Muslim women Alimony: तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण का अधिकार;क्या प्रधानमंत्री मोदी राजीव गांधी की गलती दोहराएंगे?
- केपी मौर्या के बयान से मची थी अफरातफरी
- योगी ने हार के पीछे दिया था ये तर्क
- मौर्य ने भी अलग से की थी जेपी नड्डा से मुलाकात
- बीजेपी संगठन में हो सकता है बड़ा बदलाव
Election: लोकसभा चुनाव की हार पर सीएम योगी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से करेंगे चर्चा, उपचुनावों पर भी होगी बात |
Election : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 27 जुलाई को होने वाली नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक से पहले या बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ भाजपा नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। यह मुलाकात उत्तर प्रदेश भाजपा में मचे घमासान और योगी आदित्यनाथ तथा उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य के बीच दरार की पृष्ठभूमि में हो रही है। इस घटनाक्रम से अवगत एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “दिल्ली में योगी की शीर्ष स्तरीय बातचीत उत्तर प्रदेश भाजपा पर केंद्रित रहने की संभावना है।”
Election : योगी का दिल्ली दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 29 जुलाई से शुरू होने वाले राज्य विधानमंडल के मॉनसून सत्र से महज दो दिन पहले हो रहा है। इस समय पर होने वाली बैठकें और चर्चाएं आगामी सत्र और राज्य की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। पार्टी के भीतर की चुनौतियों और असंतोष को दूर करने के लिए यह बैठकें एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दिल्ली दौरा, पार्टी और सरकार के बीच सामंजस्य स्थापित करने और आगामी चुनावों की तैयारियों को धार देने के प्रयासों का हिस्सा माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों और आगामी इलेक्शन पर चर्चा संभव
Election : न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ लोकसभा चुनाव में हार के कारणों पर चर्चा कर सकते हैं। इस बैठक में आगामी उपचुनावों पर भी विचार-विमर्श होने की संभावना है। भाजपा पहले से ही चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल के अंत में 10 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव की तैयारियों की देखरेख के लिए 16 मंत्रियों की एक टीम का गठन किया है। इस टीम का उद्देश्य उपचुनावों में पार्टी की स्थिति को मजबूत करना और चुनावी रणनीति को प्रभावी ढंग से लागू करना है। भाजपा की इस सक्रियता से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी उपचुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
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केपी मौर्या के बयान से मची थी अफरातफरी
Election : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संगठन और राज्य सरकार के बीच टकराव तब उजागर हुआ जब डिप्टी सीएम केपी मौर्य ने 14 जुलाई को पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की मौजूदगी में राज्य भाजपा की कार्यकारी समिति की बैठक में यह दावा किया कि संगठन सरकार से बड़ा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के खराब प्रदर्शन का कारण पार्टी के ‘अति आत्मविश्वास’ को बताया। उन्होंने चुनाव में हार के लिए गठबंधन सहयोगियों की अपने समुदायों से पर्याप्त मतदाता जुटाने में असमर्थता को भी जिम्मेदार ठहराया। दूसरी ओर, मौर्य ने यूपी के मुख्यमंत्री पर जवाबदेही डालने की कोशिश की, जिससे यह संकेत मिला कि बीजेपी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
यह बैठक, जिसमें बीजेपी के नेताओं ने चुनावी नुकसान का आकलन किया, पार्टी के भीतर एक लंबी समीक्षा प्रक्रिया का हिस्सा थी। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रदर्शन का विश्लेषण करना और भविष्य के लिए रणनीतियों का निर्माण करना था। इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि पार्टी के भीतर असहमति और संगठनात्मक चुनौतियों पर खुलकर चर्चा हो रही है। इससे पार्टी की आंतरिक राजनीति और राज्य सरकार के बीच संबंधों पर भी सवाल उठने लगे हैं। बीजेपी के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण और सुधार का है ताकि आने वाले चुनावों में वे बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
योगी ने हार के पीछे दिया था ये तर्क
Election: सूत्रों के अनुसार, केपी मौर्य 4 जून को आए नतीजों के बाद से कैबिनेट की बैठकों से दूर हैं और लगातार दिल्ली में रह रहे हैं। उनके इस रवैये को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली के खिलाफ विरोध के रूप में देखा जा रहा है। बैठक में बीजेपी नेताओं और गठबंधन सहयोगियों के एक वर्ग ने यह भी सुझाव दिया कि योगी ने राज्य के नेताओं और पार्टी कैडर की बजाय नौकरशाहों को अधिक महत्व दिया।
इन नेताओं का दावा है कि इससे न केवल सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर बल्कि सरकार और जनता के बीच भी अलगाव की भावना पैदा हुई है। यह असंतोष पार्टी की आंतरिक राजनीति और संगठनात्मक एकता के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। पार्टी के अंदर की ये गतिरोध की स्थिति आगामी चुनावों में बीजेपी की तैयारियों और प्रदर्शन पर भी असर डाल सकती है। पार्टी को इन मुद्दों का समाधान करके संगठन और सरकार के बीच तालमेल को मजबूत करना होगा, ताकि जनता का विश्वास बनाए रखा जा सके और आने वाले चुनावों में सफलता प्राप्त की जा सके।
मौर्य ने भी अलग से की थी जेपी नड्डा से मुलाकात
Election: राज्य कार्यकारिणी की बैठक के बाद, केपी मौर्य ने 16 जुलाई को नई दिल्ली में भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात की। इस बैठक में मौर्य ने कथित तौर पर राज्य भाजपा और राज्य सरकार में चल रहे घटनाक्रमों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने पार्टी प्रमुख को राज्य में भाजपा की स्थिति और संगठन के भीतर उत्पन्न हो रही चुनौतियों से अवगत कराया।
इस बातचीत में मौर्य ने राज्य सरकार की कार्यशैली और पार्टी के बीच बढ़ते असंतोष पर भी चर्चा की। उन्होंने नड्डा को बताया कि कैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पार्टी कैडर और राज्य नेताओं को नौकरशाहों के मुकाबले कम महत्व दिया जा रहा है, जिससे सरकार और पार्टी के बीच सामंजस्य में कमी आ रही है।
यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि इससे पार्टी नेतृत्व को राज्य में चल रही समस्याओं का एक स्पष्ट चित्र मिला है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अब इन मुद्दों का समाधान निकालने और संगठनात्मक एकता को बहाल करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि आगामी चुनावों में पार्टी को मजबूत स्थिति में लाया जा सके।
बीजेपी संगठन में हो सकता है बड़ा बदलाव
Election: राज्य भाजपा प्रमुख भूपेंद्र चौधरी ने हाल ही में जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इन बैठकों के बाद, राज्य पार्टी इकाई और योगी मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल की अटकलें लगाई जाने लगीं। माना जा रहा है कि भाजपा, लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से उबरने के लिए किसी ओबीसी नेता को राज्य प्रमुख बनाना चाहती है।
2019 में पार्टी की सीटें 62 से घटकर 33 रह गई थीं, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष और चिंताएं बढ़ गई हैं। इन बैठकों का उद्देश्य पार्टी की रणनीति में आवश्यक बदलाव करना और आगामी चुनावों के लिए मजबूत नेतृत्व का चयन करना है।
भाजपा नेतृत्व, विशेष रूप से ओबीसी समुदाय से एक प्रभावी नेता को सामने लाकर, पार्टी की जमीनी स्तर पर पकड़ को मजबूत करना चाहता है। यह कदम पार्टी के भीतर समरसता बढ़ाने और जनता का विश्वास पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से उठाया जा सकता है। चौधरी की इन उच्चस्तरीय बैठकों के बाद पार्टी में बदलाव की संभावनाएं और भी प्रबल हो गई हैं।
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