Bangladesh: जिन्ना की गलती से बना बांग्लादेश ;पूर्वी पाकिस्तान के टूटने की कहानी |
बांग्लादेश में तख्तापलट
Bangladesh में आज शेख हसीना सरकार का तख्तापलट कर दिया गया। शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दिया और तुरंत देश छोड़ दिया। फिलहाल वह भारत में हैं, लेकिन जल्द ही किसी और देश में चली जाएंगी। इस तख्तापलट ने एक बार फिर से बांग्लादेश की स्थापना और उसके इतिहास को लोगों के बीच चर्चा का विषय बना दिया है।
पाकिस्तान का निर्माण
14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो वह दो प्रमुख क्षेत्रों में बंटा था: पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान, जो अब Bangladesh है, आबादी के लिहाज से पश्चिमी पाकिस्तान से आगे था। लेकिन शक्ति और विकास के मामले में पश्चिमी पाकिस्तान का वर्चस्व था। मोहम्मद अली जिन्ना, पाकिस्तान के संस्थापक, पश्चिमी पाकिस्तान में रहते थे। बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की कहानी भाषा के आधार पर ही लिखी गई थी।
भाषा विवाद
पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56 फीसदी आबादी रहती थी, जो बांग्ला बोलती थी। यहां के लोग चाहते थे कि पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा उर्दू के साथ-साथ बांग्ला भी हो। लेकिन जिन्ना और पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को यह मंजूर नहीं था।
डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ Bangladesh‘ में लिखा है कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद उत्तर भारत के लोगों का वर्चस्व उभरकर सामने आने लगा। यह संसद से लेकर भाषा तक फैला था। शिंडल लिखते हैं कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में विवाद की पहली वजह भाषा ही बनी। पश्चिमी पाकिस्तान के लोग मानते थे कि बांग्ला भाषा पर हिंदुओं का असर है, इस वजह से वे इसे अपनाने या महत्व देने को तैयार नहीं थे।
जिन्ना की एक गलती
1948 फरवरी में जब पाकिस्तान के असेंबली में एक बंगाली सदस्य ने प्रस्ताव रखा कि असेंबली में उर्दू के अलावा बांग्ला का भी इस्तेमाल होना चाहिए, तो जिन्ना भड़क गए। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली जिन्ना ने संसद में कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है। इस वजह से यह जरूरी है कि पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा हो जो सिर्फ उर्दू हो सकती है।
भाषा आंदोलन
जिन्ना ने अपनी यह बात सिर्फ पाकिस्तान की संसद में ही नहीं रखी, बल्कि जब वह पूर्वी पाकिस्तान के दौरे पर गए तो वहां भी उन्होंने दो टूक कहा कि पाकिस्तान की एक ही भाषा है और रहेगी और वह उर्दू है। इस बात से पूर्वी पाकिस्तान के लोग सहमत नहीं थे। धीरे-धीरे यह आग बढ़ी और छात्रों ने भाषा के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में कई छात्रों की जान गई और फिर पूर्वी पाकिस्तान के आजादी की चिंगारी मशाल बन गई। इसी मशाल की आग ने और भारत के साथ ने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को एक नए देश ‘Bangladesh’ का रूप दिया।
1971 की जंग
1971 में, पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की मांग की। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के संघर्ष में भाषा और सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण योगदान था। यह संघर्ष एक सशस्त्र युद्ध में बदल गया, जिसे Bangladesh मुक्ति संग्राम के नाम से जाना जाता है।
भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष का समर्थन किया और इसने युद्ध को और भी जटिल बना दिया। 16 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया और Bangladesh एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
बांग्लादेश का निर्माण
Bangladesh के निर्माण में भाषा आंदोलन की भूमिका महत्वपूर्ण थी। यह संघर्ष न केवल सांस्कृतिक पहचान के लिए था बल्कि सामाजिक और राजनीतिक न्याय के लिए भी था। Bangladesh के लोग, जो अपनी भाषा और संस्कृति के लिए लड़ रहे थे, ने दिखाया कि स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं होता।
शेख हसीना की भूमिका
शेख हसीना, Bangladesh के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी, ने बांग्लादेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह कई बार प्रधानमंत्री बनीं और बांग्लादेश के विकास और स्थिरता के लिए काम किया।
वर्तमान संकट
आज, Bangladesh एक बार फिर संकट में है। शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दिया है और देश छोड़ दिया है। यह घटनाक्रम एक बार फिर से बांग्लादेश के इतिहास की ओर ध्यान आकर्षित करता है और यह सवाल उठाता है कि क्या देश एक बार फिर से अपने पुराने संघर्षों की ओर लौट रहा है।
निष्कर्ष
Bangladesh की स्वतंत्रता की कहानी और उसकी यात्रा एक प्रेरणादायक गाथा है। यह दिखाती है कि कैसे एक राष्ट्र अपनी भाषा और संस्कृति की पहचान के लिए संघर्ष करता है और अंततः स्वतंत्रता प्राप्त करता है। जिन्ना की एक गलती ने पूर्वी पाकिस्तान को आज के बांग्लादेश में बदल दिया। इस इतिहास से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान और भाषा को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है।
भविष्य की चुनौतियां
Bangladesh ने अपने निर्माण के बाद से कई चुनौतियों का सामना किया है, और आज भी यह देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। भाषा और सांस्कृतिक पहचान के अलावा, राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास, और सामाजिक न्याय भी प्रमुख मुद्दे हैं जिन्हें सुलझाने की जरूरत है।
नई पीढ़ी की जिम्मेदारी
Bangladesh की नई पीढ़ी पर इस देश की भविष्य की दिशा निर्धारित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हें अपने इतिहास से सबक लेते हुए एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना होगा जो सभी की सांस्कृतिक पहचान को मान्यता दे और सभी के अधिकारों का सम्मान करे।
अंत में
Bangladesh की स्वतंत्रता की कहानी भाषा आंदोलन से शुरू होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण तक पहुंचती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि भाषा और संस्कृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है और कैसे एक राष्ट्र अपनी पहचान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर सकता है। जिन्ना की एक गलती ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदल दिया, लेकिन इस बदलाव ने एक नई शुरुआत और एक नई उम्मीद की किरण भी दी।
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