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Hindenburg vs SEBI: माधबी पुरी बुच पर हिंडनबर्ग का नया हमला; सेबी प्रमुख की चुप्पी पर सवाल, क्या मामला है और भी गंभीर?

Hindenburg vs SEBI: अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म की रिपोर्ट ने सेबी प्रमुख को बनाया निशाना, आरोपों की लहर जारी |

Hindenburg vs SEBI: माधबी पुरी बुच पर हिंडनबर्ग का नया हमला; सेबी प्रमुख की चुप्पी पर सवाल, क्या मामला है और भी गंभीर?

Hindenburg vs SEBI: विवादित अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक बार फिर बाजार नियामक सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच को निशाने पर लिया है। हिंडनबर्ग रिसर्च ने सोशल मीडिया पर एक सवाल उठाया है, जिसमें उन्होंने पूछा है कि हाल के दिनों में कई गड़बड़ियों के आरोप लगने के बावजूद सेबी प्रमुख चुप क्यों हैं। हिंडनबर्ग की यह आलोचना उस समय की गई है जब मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी सेबी प्रमुख पर नए आरोप लगाए हैं।

कांग्रेस का कहना है कि माधबी पुरी बुच ने सेबी के बोर्ड में पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद एक कंसल्टेंसी कंपनी को करोड़ों रुपये का भुगतान किया। यह कंपनी उसी समय प्रमोट की गई थी जब पुरी बुच ने सेबी में अपनी भूमिका निभानी शुरू की थी। कांग्रेस के अनुसार, यह भुगतान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सेबी प्रमुख की नैतिकता और प्रशासनिक निर्णयों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

Hindenburg vs SEBI: इन आरोपों और विवादों के बीच, सेबी प्रमुख की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं। यह स्थिति नियामक की विश्वसनीयता पर प्रभाव डाल सकती है और वित्तीय बाजारों में अस्थिरता पैदा कर सकती है। हिंडनबर्ग रिसर्च और कांग्रेस के आरोपों से यह साफ है कि सेबी की भूमिका और जिम्मेदारियों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जो भविष्य में गंभीर जांच की मांग कर सकते हैं।

Hindenburg vs SEBI: मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने लगाए ये नए आरोप

कांग्रेस के अनुसार, सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच द्वारा प्रमोट की गई कंसल्टेंसी कंपनी को करीब 3 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इनमें से अधिकांश भुगतान महिंद्रा एंड महिंद्रा की ओर से प्राप्त हुआ। कांग्रेस का आरोप है कि यह एक गंभीर अपराधी साजिश (क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी) का मामला है। जब माधबी पुरी बुच सेबी की पूर्णकालिक सदस्य थीं और नियामक महिंद्रा समूह के खिलाफ मामलों की जांच कर रहा था, तब अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड को भुगतान किया गया, जिसमें बुच के पास 99 फीसदी शेयर हैं।

कांग्रेस के अनुसार, यह मामला सेबी कोड के सेक्शन 5 के तहत हितों के टकराव (कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट) का है। इस प्रकार के आरोप सेबी की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं और इसके खिलाफ गंभीर जांच की मांग करते हैं। यह मामला न केवल सेबी की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि बाजार में नियामक की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकता है।

Hindenburg vs SEBI: कांग्रेस के हिसाब से बुच की कंपनी को मिले ये पेमेंट

कांग्रेस के अनुसार, अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड को 2016 से 2024 के बीच कुल 2.95 करोड़ रुपये का भुगतान प्राप्त हुआ, जिसमें से 2.59 करोड़ रुपये महिंद्रा एंड महिंद्रा से आए। यह भी आरोप है कि महिंद्रा समूह से माधबी पुरी बुच के पति धवल बुच को व्यक्तिगत रूप से 4.78 करोड़ रुपये की कमाई हुई।

Hindenburg vs SEBI: माधबी पुरी बुच पर हिंडनबर्ग का नया हमला; सेबी प्रमुख की चुप्पी पर सवाल, क्या मामला है और भी गंभीर?

Hindenburg vs SEBI: अगोरा एडवाइजरी के अन्य प्रमुख ग्राहक डॉ रेड्डीज, पिडिलाइट, आईसीआईसीआई बैंक, सेम्बकॉर्प और विसु लीजिंग एंड फाइनेंस हैं। इनमें से कई कंपनियां शेयर बाजार पर लिस्टेड हैं। कांग्रेस का कहना है कि इन वित्तीय लेनदेन के आधार पर यह मामला गंभीर रूप से हितों के टकराव और संभावित साजिश का प्रतीक है, खासकर तब जब सेबी महिंद्रा समूह के खिलाफ जांच कर रहा था।ये आरोप सेबी की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं और इस पर अधिक गहन जांच की आवश्यकता को उजागर करते हैं। कांग्रेस का दावा है कि इस तरह की घटनाएं नियामक संस्थाओं की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती हैं और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

Hindenburg vs SEBI: महिंद्रा और डॉ रेड्डीज ने किया आरोपों का खंडन

Hindenburg vs SEBI: कांग्रेस के आरोपों के बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा और डॉ रेड्डीज ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है। दोनों कंपनियों ने कांग्रेस पार्टी के लगाए गए आरोपों को भ्रामक बताते हुए उनका सिरे से खंडन किया है। महिंद्रा एंड महिंद्रा और डॉ रेड्डीज ने कहा है कि कांग्रेस के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और उनका कोई वास्तविक आधार नहीं है।

इससे पहले, कांग्रेस ने सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के खिलाफ उनके पूर्व नियोक्ता आईसीआईसीआई बैंक द्वारा किए गए भुगतान में अनियमितता का आरोप लगाया था। हालांकि, आईसीआईसीआई बैंक ने इन आरोपों को भी सिरे से खारिज किया और कहा कि इस मामले में कोई भी अनियमितता नहीं बरती गई है।इन घटनाओं ने राजनीतिक और कारोबारी जगत में एक नई बहस को जन्म दिया है। कांग्रेस और कंपनियों के बीच इस विवाद ने सेबी और अन्य नियामक संस्थानों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। अब देखना होगा कि इस मामले की जांच के बाद क्या निष्कर्ष सामने आते हैं और यह स्थिति कैसे आगे बढ़ती है।

Hindenburg vs SEBI: हिंडनबर्ग ने सेबी चीफ की चुप्पी पर उठाया सवाल

हिंडनबर्ग रिसर्च ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर आरोपों को लेकर एक पोस्ट किया है। इसमें कहा गया है कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच की 99 फीसदी शेयरहोल्डिंग वाली प्राइवेट कंसल्टिंग कंपनी ने उस समय कई लिस्टेड कंपनियों से भुगतान प्राप्त किया जब वह सेबी की पूर्णकालिक सदस्य थीं। इन कंपनियों में महिंद्रा एंड महिंद्रा, आईसीआईसीआई बैंक, डॉ रेड्डीज और पिडिलाइट शामिल हैं।

Hindenburg vs SEBI: हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया है कि इन कंपनियों से भुगतान प्राप्त करने का समय विशेष रूप से संदिग्ध है, क्योंकि बुच सेबी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं। हालांकि, बुच की सिंगापुर स्थित कंसल्टिंग कंपनी के बारे में कोई विवरण अभी तक सामने नहीं आया है।कई सप्ताह से इन आरोपों के सामने आने के बावजूद, माधबी पुरी बुच ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह स्थिति चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि सेबी की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि इन आरोपों की जांच के दौरान क्या निष्कर्ष सामने आते हैं और सेबी इस पर किस प्रकार की कार्रवाई करता है।

Hindenburg vs SEBI: पिछले महीने हिंडनबर्ग ने जारी की थी ये रिपोर्ट

Hindenburg vs SEBI: सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच की परेशानियां हिंडनबर्ग रिसर्च से ही शुरू हुई हैं। हिंडनबर्ग ने पिछले महीने अडानी समूह के खिलाफ एक नई रिपोर्ट जारी की, जिसमें सेबी की चल रही जांच पर गंभीर सवाल उठाए गए। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति के बीच अडानी समूह के साथ एक वाणिज्यिक संबंध है।

Hindenburg vs SEBI: इस आरोप के बाद, माधबी पुरी बुच और उनके पति ने संयुक्त बयान जारी कर हिंडनबर्ग के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि ये आरोप केवल उनकी विश्वसनीयता को खराब करने के लिए उठाए गए हैं। अडानी समूह ने भी इसी तरह का बयान जारी कर सेबी प्रमुख और उनके पति के साथ किसी भी प्रकार के वाणिज्यिक संबंध होने से इनकार किया।इन घटनाओं ने सेबी की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, और हिंडनबर्ग के आरोपों ने इस विवाद को और भी जटिल बना दिया है। इस स्थिति ने अडानी समूह और सेबी की भूमिका पर व्यापक बहस को जन्म दिया है।

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