NSE : NSE ने सर्कुलर जारी कर बताया कि 1 अगस्त से 1010 कंपनियों को चरणबद्ध तरीके से सूची से हटाया जाएगा, जिसमें अडानी पावर, यस बैंक, भारत डायनामिक्स और पेटीएम शामिल हैं।
NSE : नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने इंट्राडे और डेरिवेटिव ट्रेडिंग की मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेट्रल सूची में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इस सूची में पहले शामिल 1730 सिक्योरिटीज में से 1010 को हटा दिया गया है। NSE का यह नया नियम 1 अगस्त से लागू होगा। इस फैसले से कई प्रमुख कंपनियां प्रभावित होंगी, जिनमें अडानी पावर (Adani Power), यस बैंक (YES Bank), सुजलॉन (Suzlon), भारत डायनामिक्स (Bharat Dynamics) और पेटीएम (Paytm) शामिल हैं। इस कदम का उद्देश्य व्यापार के जोखिम को कम करना और निवेशकों की सुरक्षा को बढ़ाना है। NSE का मानना है कि इस बदलाव से बाजार में पारदर्शिता और स्थिरता बढ़ेगी।
मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेट्रल सूची में बदलाव का निर्णय NSE द्वारा जारी सर्कुलर के माध्यम से सूचित किया गया है। यह कदम उन निवेशकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो इंट्राडे और डेरिवेटिव ट्रेडिंग में सक्रिय हैं। सूची से हटाए गए 1010 सिक्योरिटीज को लेकर निवेशकों को अपने निवेश की रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। NSE के इस कदम से बाजार में किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
NSE ने जारी किया सर्कुलर
NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) ने हालिया सर्कुलर में जानकारी दी है कि इंट्राडे और डेरिवेटिव ट्रेडिंग में मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेट्रल के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली सिक्योरिटीज की सूची को सख्त किया जा रहा है। एक्सचेंज ने स्पष्ट किया है कि वह केवल उन्हीं सिक्योरिटीज को कोलेट्रल के रूप में स्वीकार करेगा, जिनका पिछले 6 महीनों में कम से कम 99 प्रतिशत दिनों पर कारोबार हुआ है। साथ ही, उन सिक्योरिटीज की इंपैक्ट कॉस्ट 1 लाख रुपये के ऑर्डर वैल्यू के लिए 0.1 प्रतिशत तक होनी चाहिए।
NSE का यह कदम व्यापार के जोखिम को कम करने और निवेशकों की सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस नई नीति से केवल उन्हीं सिक्योरिटीज को कोलेट्रल के तौर पर अनुमति मिलेगी, जो तरलता और स्थिरता के मानकों पर खरी उतरती हैं। इससे निवेशकों को अधिक सुरक्षित और पारदर्शी व्यापार का वातावरण मिलेगा।
निवेशकों को इस बदलाव के अनुसार अपनी रणनीतियों को समायोजित करना होगा, क्योंकि अब कोलेट्रल के रूप में स्वीकार की जाने वाली सिक्योरिटीज की सूची में कमी आई है। NSE का यह निर्णय बाजार में अधिक स्थिरता और विश्वसनीयता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
बाय नाव, पे लेटर जैसी सुविधा है एमटीएफ
मार्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (MTF) की तुलना ‘अभी खरीदें, बाद में भुगतान करें’ से की जा सकती है। MTF निवेशकों को कुल ट्रेड वैल्यू के एक हिस्से के लिए शेयर खरीदने की अनुमति देता है। इसमें निवेशक थोड़ी धनराशि लगाते हैं और बाकी का पैसा उन्हें ब्रोकर से ब्याज पर मिल जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई निवेशक 100 रुपये प्रति शेयर पर कारोबार कर रही किसी कंपनी के 1,000 शेयर खरीदना चाहता है तो उसे 1 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। लेकिन MTF की मदद से वह केवल 30 हजार रुपये देगा और बाकी के 70 हजार रुपये उसे ब्रोकर से मिल जाएंगे।
MTF निवेशकों को अपनी निवेश क्षमता बढ़ाने का एक साधन प्रदान करता है, जिससे वे कम पूंजी के साथ भी बड़े निवेश कर सकते हैं। हालांकि, इस सुविधा का उपयोग करते समय निवेशकों को ब्याज दर और संबंधित जोखिमों का ध्यान रखना आवश्यक है। ब्रोकर द्वारा दिए गए धन पर ब्याज का भुगतान करना होता है, और बाजार की अस्थिरता के कारण नुकसान की संभावना भी बनी रहती है। इसलिए, MTF का उपयोग समझदारी और सावधानीपूर्वक योजना के साथ करना चाहिए ताकि इसके फायदों का पूरा लाभ उठाया जा सके और संभावित नुकसान से बचा जा सके।
इन कंपनियों के स्टॉक नहीं रखे जा सकेंगे गिरवी
इसके बदले में आपको अपने अकाउंट में मौजूद स्टॉक या अन्य सिक्योरिटीज को गिरवी रखना होगा। इन्हें कोलेट्रल माना जाता है। अब नए सर्कुलर के अनुसार, लिस्ट से हटाई गई 1010 कंपनियों के स्टॉक कोलेट्रल के तौर पर स्वीकार नहीं किए जाएंगे। इस लिस्ट में भारती हेक्साकॉम, आईआरबी इंफ्रा, एनबीसीसी, गो डिजिट, टाटा इनवेस्टमेंट, आइनॉक्स विंड, जुपिटर वैगन, ज्योति सीएनसी, जेबीएम ऑटो, हैटसन एग्रो और तेजस नेटवर्क जैसी कंपनियों को बाहर कर दिया गया है। इन्हें कई चरणों में कोलेट्रल लिस्ट से हटाया जाएगा।
इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य बाजार में स्थिरता और पारदर्शिता बनाए रखना है। जिन कंपनियों को लिस्ट से बाहर किया गया है, उनके स्टॉक को अब मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेट्रल के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इससे निवेशकों को अपने निवेश रणनीतियों में बदलाव करना पड़ेगा और अधिक स्थिर और उच्च तरलता वाले स्टॉक्स की ओर रुख करना होगा।
इस नए नियम के प्रभाव से बाजार में अस्थिरता कम होगी और निवेशकों को सुरक्षित निवेश के विकल्प मिलेंगे। NSE का यह कदम निवेशकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जो बाजार में दीर्घकालिक स्थिरता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देगा।
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