the-number-of-women-in-top-positions-in-big-companies-has-increased/ आजकल कंपनियों में महिलाओं की भूमिका का महत्व और उनके योगदान को लेकर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। अध्ययन से पता चलता है कि जहां अधिक संख्या में महिलाएं काम करती हैं, वहां कंपनियों का प्रदर्शन भी बेहतर होता है। महिलाओं की उपस्थिति से कंपनियों को कई तरह के फायदे मिलते हैं, जैसे कि उनकी दृष्टिकोण, नवाचार, और व्यापारिक नेतृत्व में योगदान।
भारत में भी महिलाओं की संख्या कंपनियों में बढ़ती जा रही है। साल 2013 में लागू किए गए कानून के बाद, बड़ी कंपनियों के बोर्ड में कम से कम एक महिला होना अनिवार्य हुआ है। इससे केवल एक साल में ही बहुत सी कंपनियां महिलाओं को बोर्ड में शामिल करने में सफल रहीं हैं। पहले तो ऐसी कंपनियां थीं जिनमें किसी भी महिला की उपस्थिति नहीं थी, लेकिन अब ये संख्या कम हो गई है।
नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा जारी की गई रिसर्च रिपोर्ट दर्शाती है कि भारतीय कंपनियों में महिलाओं की उपस्थिति में वृद्धि हुई है, लेकिन इसमें अभी भी कई कड़ीयाँ बाकी हैं। साल 2014 से लेकर 2023 तक, कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में महिलाओं की संख्या तीन गुना बढ़ी है, जिससे कि इस समय लगभग 16% बोर्ड सदस्य महिलाएं हैं। इसके साथ ही, बड़े पदों जैसे टॉप मैनेजमेंट में भी महिलाओं की भूमिका में वृद्धि दर्ज की गई है, जहां से 14% से बढ़कर 22% महिलाएं अब प्रतिष्ठित पदों पर काम कर रही हैं।
हालांकि, ये आंकड़े भारत को अपनी सामर्थ्य में एक स्थानांतरण के रूप में दिखाते हैं, लेकिन अभी भी दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले हमारी महिलाओं की प्रतिष्ठित पदों में उपस्थिति में कमी है। दुनिया में औसतन 20% महिलाएं कंपनियों के बोर्ड में होती हैं, जबकि भारत में यह संख्या सिर्फ 17% है। इसके अतिरिक्त, देशों जैसे फ्रांस में यह संख्या अधिक है, जहां 43% महिलाएं कंपनियों के बोर्ड में शामिल हैं।
इस विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज में महिलाओं की बिजनेस संप्रेषण में और भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उनके लिए समान अवसर प्राप्त करने के लिए नए उदाहरण स्थापित किए जाने चाहिए।
क्या कहता है कानून?
कंपनियों में महिला डायरेक्टरों की भूमिका का महत्व भारतीय कंपनी कानून के तहत महत्वपूर्ण है। साल 2013 में भारत ने एक नया कानून पारित किया था, जिसके अनुसार हर बड़ी कंपनी के बोर्ड में कम से कम एक महिला डायरेक्टर होना चाहिए। इससे पहले, बहुत सी कंपनियों में डायरेक्टर्स का बोर्ड महिलाओं से वंचित था, लेकिन यह कानून ने महिलाओं को बिजनेस निर्णयों में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया।
भारतीय कंपनी कानून की धारा 149 और कंपनियां (डायरेक्टरों की नियुक्ति और योग्यता) नियम 2014 में इस मामले को विस्तार से व्याख्या की गई हैं। ये नियम स्पष्ट करते हैं कि कैसे महिलाओं को कंपनी के डायरेक्टर बोर्ड में शामिल किया जाएगा, उनकी नियुक्ति के मानक और उनकी योग्यता के मापदंड क्या होंगे। इससे न केवल वित्तीय प्रबंधन में महिलाओं का स्थानांतरण हुआ है, बल्कि उनकी स्थिरता और उनकी दृष्टिकोण से बनाए जाने वाले निर्णयों में भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
कानून बनने के बाद क्या बदलाव आया
भारतीय कंपनी कानून ने 2015 से महिलाओं के बोर्ड में अधिक शामिल होने का मार्ग प्रस्तुत किया, लेकिन इसके प्रभाव से सीधे सीईओ और सीएफओ जैसे टॉप मैनेजमेंट पदों पर महिलाओं की संख्या में अभी भी कमी देखी जा रही है। साल 2022-23 में भारतीय कंपनियों में से आधी से अधिक में कोई भी महिला टॉप मैनेजमेंट में नहीं थी, और लगभग 10% कंपनियों में सिर्फ एक महिला ही थी।
NCAER की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, महिला डायरेक्टरों की औसत उम्र पुरुष डायरेक्टरों से काफी कम होती है, और यह अंतर कानून लागू होने से पहले और बाद में भी बढ़ गया है। इसके साथ ही, नई महिला डायरेक्टर ज्यादा पढ़ी-लिखी और अनुभवी भी दिखाई देती हैं, जोकि स्थापित महिला डायरेक्टरों से भिन्न हैं।
इस नए कानून के परिणामस्वरूप, महिला डायरेक्टरों की मीटिंग में भागीदारी बढ़ी है। पहले ज्यादातर मीटिंग में मर्द ही शामिल होते थे, लेकिन अब दोनों की हिस्सेदारी में समानता आई है। इससे स्पष्ट होता है कि अब महिलाओं को भी विभागीय निर्णय लेने का समान अवसर मिल रहा है और वे बोर्ड डिस्कशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
फिर भी कहां है कमी?
आपकी बात सही है कि शीर्ष पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है, और इसका मुख्य कारण समाज में अभी भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम सक्षम माना जाना है। यह सोच उन्हें करियर के विभिन्न पहलुओं में अधिक अवसरों से वंचित करती है।
महिलाओं को काम में प्रमोशन और वेतन वृद्धि में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव अक्सर उनके अधिक घरेलू जिम्मेदारियों के कारण होता है, जिससे कि वे करियर के माध्यम से आगे नहीं बढ़ पाती हैं। इसके अलावा, कई कंपनियों में काम का माहौल भी महिलाओं के लिए अनुकूल नहीं होता, जिससे कि वे अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं कर पाती हैं।
इस समस्या का समाधान करने के लिए समाज में समर्थन पूर्ण बदलाव की आवश्यकता है। सामाजिक सोच और कानूनी प्रणालियों में सुधार के माध्यम से, महिलाओं को समान अवसर प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। अधिक महिला उत्पादन सृजनात्मकता और नवाचार के क्षेत्र में उनकी भागीदारी से समृद्ध समाज की दिशा में प्रगति हो सकती है।
महिलाओं के होने से कंपनियों को फायदा या नुकसान?
ज्यादा महिलाओं के होने से कंपनी का कामकाज और पैसा कमाने की ताकत पर क्या असर पड़ता है, ये देखने के लिए NCAER ने 1402 बड़ी कंपनियों का 15 साल का डेटा देखा. उन्होंने पाया कि बड़ी और मध्यम कंपनियों में अगर कम से कम एक महिला डायरेक्टर होती है तो कंपनी का काम अच्छा चलता है. साथ ही पैसा कमाने का जोखिम भी कम होता है, लेकिन छोटी कंपनियों में ऐसा नहीं होता है.
रिसर्च में पाया गया कि कंपनी के बोर्ड में जितनी ज्यादा महिलाएं होंगी, कर्मचारियों की रेटिंग और राय उतनी ही अच्छी होगी. अगर कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में कम से कम एक महिला है तो यह प्रभाव और भी ज्यादा होगा. अगर कंपनी के बोर्ड में ज्यादा महिलाएं हैं और टॉप मैनेजमेंट में कम से कम एक महिला है तो कर्मचारी कंपनी के बारे में अच्छी बातें करते हैं और कंपनी को अच्छी रेटिंग देते हैं.
इस स्टडी से साफ हो गया कि भारत की कंपनियों में बोर्ड और टॉप पोजिशन पर महिलाओं को लाना सिर्फ समानता के लिए नहीं, बल्कि बिजनेस के लिए भी फायदेमंद है.
वर्ल्ड बैंक का क्या कहना है?
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट जो महिलाओं के बिज़नेस के विकास पर ध्यान केंद्रित करती है, उसमें स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं को छोटे-मोटे व्यापार शुरू करने में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों में से एक है कि वे बैंक से उपयुक्त वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं कर पाती हैं। इसलिए, सरकारों को महिलाओं के बिज़नेस को समर्थन देने और लोन प्राप्ति में सुधार करने की जरूरत है।
रिपोर्ट ने डिजिटल एजुकेशन की भी महत्वकांक्षा की है, जिससे कि महिलाएं वित्तीय संबंधों को सुचारू रूप से प्रबंधित कर सकें। उन्हें डिजिटल तरीके से हिसाब-किताब और लेन-देन की प्रक्रियाओं का ज्ञान होना चाहिए ताकि वे अपने व्यवसाय में सही निर्णय ले सकें।
इसके अलावा, रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि सरकारें और संगठनों को महिलाओं को बड़े पैमाने पर कर्ज प्रदान करने में मदद करनी चाहिए, जो कि उनके व्यापार को मजबूत करने में मदद करेगा। गांवों में महिलाओं के लिए बिज़नेस समर्थन केंद्रों की स्थापना और उनकी सामुदायिक उत्थान के लिए बिज़नेस एसोसिएशन की गठन भी जरूरी है।
इन सुझावों को अमल में लाने से, महिलाओं को बिज़नेस शुरू करने और उसे विकसित करने में मदद मिल सकेगी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके।